डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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कांग्रेस दल के सर्वेसर्वा राहुल गांधी की ‘भारत-जोड़ो यात्रा’ का समापन हो गया है। केरल से कश्मीर तक की यह यात्रा शंकराचार्य के अलावा भारत में अब तक राहुल के सिवाय शायद किसी और ने कभी नहीं की। यह यात्रा इस अर्थ में ऐतिहासिक है, लेकिन भारत कहां से टूट रहा है, जिसे जोड़ने के लिए राहुल ने यह बीड़ा उठाया है ? इस यात्रा का नाम यदि ‘कांग्रेस जोड़ो’ होता तो कहीं बेहतर होता। कांग्रेस टूट ही नहीं रही है, वह दिवंगत होती जा रही है। भारत का विपक्ष अंकुशहीन होता जा रहा है। राहुल ने श्रीनगर में कहा कि इस यात्रा ने देश के सामने शासन का वैकल्पिक नक्शा पेश किया है। यदि ऐसा होता तो चमत्कार हो जाता। वह तो बिना यात्रा किए हुए भी पेश किया जा सकता था। यात्रा के दौरान राहुल ने कई ऐसे बयान दे डाले, जो कांग्रेस की ही नीतियों के विरुद्ध थे। जैसे सावरकर की निंदा, जातिय जनगणना का समर्थन, कश्मीर की ज़मीन पर चीन का कब्जा आदि! इसमें राहुल का कोई दोष नहीं मानता हूँ। यह दोष है राहुल के आस-पास घिरे हुए खुशामदियों का! वे लकड़ी के गुड्डे में जैसी और जितनी चाबी भर देते हैं, वह भोला भंडारी वैसा ही नाच दिखा देता है। राहुल को एक मूल मंत्र किसी ने पकड़ा दिया। वह है-‘नफरत के बाजार में, मैं मुहब्बत की दुकान खोलने आया हूँ।’ सारे देश में मुहब्बत की दुकान खोलने से बेहतर होता कि वह अपने लिए ही मुहब्बत की कोई दुकान खोल लेता। राहुल अपनी बहन प्रियंका वाड्रा से ही कुछ सीख ले लेता। राहुल सुंदर है, स्वस्थ है, सदाचारी है। संपन्न और जाने-माने घर का युवक है। वह साधुओं और मौलानाओं का भेस बनाकर क्यों घूम रहा है ? क्या वह नरेन्द्र मोदी की नकल कर रहा है ? वह महात्मा गांधी की नकल करता तो कहीं बेहतर होता। उसे फिरोज गांधी का वंशज नहीं, महात्मा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता! गांधी उपनाम को वह सार्थक कर देता। उसकी दादी इंदिरा जी यदि अपने नाम के आगे गांधी उपनाम नहीं लगातीं तो भी उनका नाम काफी बड़ा हो गया था। इस भारत जोड़ो का लाभ कांग्रेस को कितना मिलेगा, इस पर कांग्रेसी नेताओं को ही बड़ा शक है, लेकिन राहुल गांधी को इसका जबर्दस्त लाभ मिल रहा है। देश का हर नेता अपने प्रचार का मोहताज होता है। वे आत्म-प्रचार पर करोड़ों रु. खर्च कर डालते हैं, लेकिन राहुल को एक कौड़ी भी खर्च नहीं करनी पड़ रही है। टी.वी. चैनलों और अखबारों में पिछले साढ़े ४ महीने में राहुल और मोदी लगभग बराबर-बराबर दिखाई पड़ रहे हैं। राहुल का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि, साढ़े ४ महीने में उसका जनता से सीधा संपर्क हुआ है, जो ४५ साल के राजमहलिया संपर्क से ज्यादा कीमती है।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।