मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’
जयपुर(राजस्थान)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………
जब उसने कभी माँ का किरदार निभाया होगा,
साड़ी में चेहरे पर ममता का भाव तो आया होगाl
एक संवेदनहीन बुत से वह कैसे दिल लगाएगी,
यह ख्याल उसके मन में हजार बार आया भी होगा ?
सोचती होगी क्या खूब करिश्मा है यह भी दुनिया में,
कितनी ही मन्नतों के बाद उसने एक बच्चा पाया होगा ?
और सिहरन-सी दौड़ी होगी सचमुच उसके समूचे जिस्म में,
जब बच्चे ने पहली बार उसे सूँधकर,टटोलकर पाया होगाl
चौंक कर जागी तो होगी निश्चित वह अपने कमरे में भी,
जब-जब याद माँ का किरदार उसके जेहन में आया होगाl
उसने जब माँ का किरदार…
गीले में खुद सोकर,उसने सूखे में बच्चे को सुलाया होगा,
इस तरह उसने माँ का हर फर्ज ईमान से निभाया भी होगाl
यह सब कर लेने के बाद आसान लगा होगा सब-कुछ मगर,
जब बच्चे को भूख लगी होगी तो खुद को बेबस पाया होगा ?
नोंच कर जब जिस्म बच्चे ने माँ का अहसास कराया होगा,
अपने रक्त को ही दूध बनाकर उसने कैसे फिर पिलाया होगा ?
जब उसने माँ का किरदार…
समेटकर उसे अपने आँचल में भी निश्चित छिपाया होगा,
कर दुआ माँ ने उसे हर बुरी बला से भी खूब बचाया होगाl
वो हजारों काम छोड़ झट से दौड़कर आई भी होगी,
मचल कर जब शिद्दत से बच्चे ने ‘माँ’ पुकारा होगाl
मारे डर के जब भी,वो कभी जोर से चिल्लाया भी होगा,
उस माँ ने मचलकर उसे अपनी छाती से चिपाया भी होगाl
लगाकर उसे जिस्म से कभी अपने सुलाया भी होगा,
पहला गीत उसने अपनी धड़कन का सुनाया भी होगाl
मगर भुलाकर खुद की भूख और कपड़ों की सुध-बुध,
बिलखने पर मुँह का निवाला निकालकर कैसे खिलाया होगा ?
उसने जब माँ का किरदार…
बार-बार अपने नाम की जगह उसका ही नाम,
लिख-लिखकर दिल और दिमाग से मिटाया भी होगाl
थियेटर में जब किसी ने उसे नाम से बुलाया होगा,
उसके नाम से पहले बच्चे का नाम शर्तिया आया भी होगाl
वह माँ बनकर कभी जी नहीं सकती यह अलग बात है,
मगर उसने माँ को माँ के किरदार में कई बार जीया भी होगाl
निभाते-निभाते किरदार वह असल में माँ हो गई होगी,
अपने वजूद में घुल चुकी माँ को फिर नहीं बामुश्किल होगाl
यह भी सब-कुछ कर लिया होगा उसने आसानी से लेकिन,
अपने ही जिस्म से उसने एक नया साँचा कैसे बनाया होगा ?
जब उसने माँ का किरदार…
खुद ईश्वर भी तो माँ हो गया होगा कुछ क्षण के लिए बेशक,
जब माँ का साँचा बना के उसमें ममता भरा दिल बनाया होगाl
ता-उम्र गरीब ही रहेगा वह इस जहान में अमीर होकर भी,
जिसने अपने कर्मों से अपनी ही माँ का दिल दुखाया होगाl
फिर भी नमन करता है ‘मनु’ उसे अपनी कलम से बार-बार,
जिसने भुलाकर खुद को माँ का यह किरदार निभाया होगाl
उसने जब माँ का किरदार निभाया होगा…ll
परिचय-मनोज कुमार सामरिया का उपनाम `मनु` है,जिनका जन्म १९८५ में २० नवम्बर को लिसाड़िया(सीकर) में हुआ है। जयपुर के मुरलीपुरा में आपका निवास है। आपने बी.एड. के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) की भी शिक्षा ली है। करीब ८ वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैं। लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी श्री सामरिया करते हैं। आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं। मनु कई वेबसाइट्स पर भी लिखने में सक्रिय हैंl साझा काव्य संग्रह में-प्रतिबिंब,नए पल्लव आदि में आपकी रचनाएं हैं, तो बाल साहित्य साझा संग्रह-`घरौंदा`में भी जगह मिली हैl आप एक साझा संग्रह में सम्पादक मण्डल में सदस्य रहे हैंl पुस्तक प्रकाशन में `बिखरे अल्फ़ाज़ जीवन पृष्ठों पर` आपके नाम है। सम्मान के रुप में आपको `सर्वश्रेष्ठ रचनाकार` सहित आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैंl