धर्मेंद्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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मुफ्तखोरी और राष्ट्र विकास…
देश खोखला कर रही,
सबको बना रही हरामखोर
यह मुफ्तखोरी की आदत,
सबको बना रही फरामोश।
बिन मांगे जब मिलना खाना,
कुत्ता भी फिर क्यों दुम हिलाए ?
अपने ही घर में पड़ा रहे,
अपने ही स्वामी को चिढ़ाए।
मुफ्त में जब बिल्ली को मिलता,
चूहे को फिर वो क्यों खाए ?
चाहे मूषक तहस-नहस कर डाले,
बिल्ली को तो मुफ्त मिल जाए।
यह तो सभी जानवर हैं यारों,
जो मुफ्त से हुए खराब
पर आज देश का मानव भी,
मुफ्तखोरी के लिए लाचार।
देश पिछड़ रहा दिन-प्रतिदिन,
बढ़ रहा है भ्रष्टाचार
फिर भी आस लगाए हो कि,
मुफ्तखोरी से हो राष्ट्र विकास।
मुफ्तखोरी ऐसी बीमारी,
करती बुद्धि और ज्ञान ह्रास
तन-मन को करती कमजोर,
संघर्ष का मिटाती नामो-निशान।
करना है राष्ट्र विकास तो,
मुफ्तखोरी से बचना होगा।
देना होगा दाम हम सभी को,
ईमानदारी पर चलना होगा॥