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मूर्धन्य रिश्ता ‘माँ’

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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माँ और हम (मातृ दिवस विशेष)….

जीवन में हर रिश्ते का अपना ही महत्व होता है। कहीं खून का रिश्ता, तो कहीं विचारों का, तो कहीं मन का। ऐसे ही अनेक रिश्तों की माला में गुथा होता है यह मानव जीवन, लेकिन इन सभी रिश्तों से अलग है माँ और संतान का नाता। माँ और संतान के रिश्ते के अतिरिक्त प्रत्येक रिश्ता मतलबी और मौका परस्त होता है। जब तक एक पक्ष दूसरे के लिए त्यागी, अमहत्वाकांक्षी और समर्पित रहता है, तब तक रिश्तों की डोर बंधी रहती है और रिश्तों की कसमें खाई जाती है-मैं तेरा भाई हूँ, मैं तेरी बहन हूँ, मैं तेरा यार हूँ, मैं संतान हूँ, मैं…आदि, मगर रिश्तों की आड़ में अनेक प्रपंच और मतलब छिपे रहते हैं। दिशा और समय पलटने पर अपने-आपको भाई, संतान आदि कहने वाले सबसे पहले अपना पल्ला झाड़ कर चल देते हैं।
संसार में कितने रिश्ते और नातों की दुकान ही क्यों न लगी हो, लेकिन सब रिश्तों में मूर्धन्य रिश्ता माँ का होता है। वह अपने बच्चे को गर्भावस्था से लेकर अंतिम साँस तक बेमिसाल स्नेह और दुलार तो करती ही है, लेकिन उससे भी बढ़कर वह अपनी संतान के अनकहे शब्दों और उसके मुख पर उभरी समस्त मुद्राओं को आत्मसात भी कर लेती है। माँ किसी जादूगर अथवा किसी अजूबे से कम नहीं होती, क्योंकि माँ एक नवजात शिशु के रुदन से न जाने कैसे भांप लेती है कि, बच्चा भूखा है, प्यासा है, सू अथवा छी आई है, उसके पेट में दर्द है या फिर वह माँ की गोद चाहता है आदि अनेक तथ्य हैं, जिनका वर्णन कर पाना संसार की किसी भी संतान के वश में नहीं। माँ स्वयं खाने से पहले संतान की क्षुधा को शांत करती है, तब कहीं स्वयं भोजन का सेवन करती है। माँ त्याग-समर्पण का जीता-जागता उदाहरण है। वह कभी अपने लिए कुछ नहीं मांगती, वह तो बच्चों के उज्वल भविष्य और स्वस्थ जीवन की मंगल कामना करती है। बच्चे की कामयाबी पर नाते-रिश्तेदार कितनी ही बधाइयाँ दें या उत्सवों का आयोजन-प्रयोजन कर लें, मगर माँ के हृदय से प्रस्फुटित दुआएं और बधाइयाँ सभी बधाइयों के समक्ष फीकी और अर्थहीन है।

संतान कभी माँ के साथ दुर्व्यवहार कर सकती है और आपस में भेदभाव कर सकती है, मगर माँ के लिए सभी संतान एक समान होती है। माँ केवल माँ होती है, उसका स्थान संसार में कोई नहीं ले सकता है, क्योंकि उसकी विशालता ‘सागर’ है तो आशीष और प्रतीक में ‘ईश्वर’ ही है।

परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl