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मैं भी पढ़ने जाता था

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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मेरा विद्यार्थी जीवन स्पर्धा विशेष ……..

मन भाए बचपन की यादें,मन के राग मैं गाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

अच्छा लगता मित्रों के संग में,कागज की नाव चलाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

पहले तो मन लगा नहीं था,रोते इधर-उधर भग जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

धीरे-धीरे मन लागन लागे,भोर में ही जग जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

गाय-भैंस को नाद लगाकर,ढीबरी भी मैं जलाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

खली-भूसा नाद में रखकर,पढ़ने बैठ भी जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

कभी-कभी तो चाँदनी में भी,खोल किताब बैठ जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

सुबह होते ही प्राची में सूरज,अपना रंग जमाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

सूरज निकलते ही गोबर खांची का,सिर पर मेरे उठ जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

गोबर फेंकना खेत में अपने,शौक मेरा बन जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

जब बाल्टी की खन-खन होती,बछड़ा बेचैन हो जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

गैया से जब दूध निकलता,मन गदगद हो जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

जल्दी-जल्दी दातुन करना,नहाना भी मन को भाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

खाना खाकर कपड़ा पहनना,जी भी बहुत घबराता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

घर से निकलती मित्रों की टोली,बढ़कर हाथ मिलाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

हँसते-गाते आगे बढ़ जाते,स्कूल तभी आ जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

घंटी बजती सब प्रार्थना करते,मन को सुकून मिल जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

एक-एक सब विषय हम पढ़ते,मध्याह्न तभी हो जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

घंटी बजती कुछ खाते खेलते,फिर गिनती-पहाड़ा सुनाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

घर आते जब चार बजता था,गाय भैंसों को खोल चराता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

ऐसे ही जूनियर तक चला,पढ़ता-कामों में हाथ बँटाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

होत सबेरे ताल में जाकर,तीना काट ले आता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

जोंक से बचने की खातिर,पैजामे पर मोजा चढ़ाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

हुई पढ़ाई हाई स्कूल में,साईकिल से मैं जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

राह पतली थी गाँव की मेरे,नहर पर आता-जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

होती होड़ साईकिल की नहर पर,मित्रों को खूब गिराता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

होती होड़ पढ़ाई में भी,कभी आगे-कभी पीछे भी रह जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

अच्छे मित्र मिले थे मुझको,उनका संग भी मुझको भाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

संतोष का संग अटूट अभी भी,संजय से ऐसा ही नाता था।
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

नरहेजी में पढ़ने जाना,मन को बहुत लुभाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

कक्षा से जब छुट्टी मिलती,मन को अख़बार लुभाता था,
समाचार पढ़ने की खातिर,चाय की दुकान पर जाता था।

गुरु वृंद जब ज्ञान लुटाते,मैं भी खूब ध्यान लगाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

हाई स्कूल,इंटर,बी.ए.,एम.ए. की,यादों को खूब सजाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

एम.ए. प्रथम श्रेणी में आया,सपने खूब सजाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

बी.एड. किया कुरुक्षेत्र से मैंने,कॉलेज में धाक जमाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

विरेंद्र और रमेश सर जी का,व्यवहार दिल को छू जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

बहुत मित्र मिले वहाँ भी,जयसिंह,कुलदीप संग आता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

यह जीवन था खुशियों वाला,गम से कहीं ना नाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

कहे ‘उमेश’ विद्यार्थी जीवन,मन को हरदम ही भाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

सीधा-सादा भोला-भाला,अनुशासन मुझको भाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

अनुशासन है विद्यार्थी का गहना,यह तब भी मुझको आता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

कहे उमेश-सदव्यवहार से,बिगड़ा काम बन जाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था।

शाबाशी मिलती मुझको थी,किसी का दिल नहीं दुखाता था,
बचपन मेरा बड़ा निराला,मैं भी पढ़ने जाता था॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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