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ये जीवन बहुत निराला

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रिश्ते-नातों में फंसता,
सुलझाओ और उलझता है
अच्छा मकड़-जाला है
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है।

कहीं मिले अकूत खजाना,
तो भी चाह नहीं मरती
कहीं झोंपड़ी में खुशी से,
रातें कटती हैं रहती
कहीं मांगे भीख मिले ना,
कहीं मिलती मधुशाला है।
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है।

पाप-पुण्य की परिभाषा को,
कैसे कोई जान सका
ईमानदार का हाल बुरा,
भ्रष्टाचारी खुशहाल रहा
कभी मुस्कान कभी रुदन
अंधेरा कभी उजाला है
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है।

जीवन-क्षणभंगुर है फिर भी,
महल अटारी सबको चाहिए
दो गज जमीं के लिए लड़ें,
ख़ून के रिश्ते हैं क्या कहिए
भाई-भाई छीन रहा,
एक-दूजे का निवाला है
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है।

कुछ चाहें और कुछ मिलता,
हर पल संघर्षों से लड़ता
रोटी कपड़े के लाले हैं,
जीवन द्वंद्वों से है कटता
सब अपना किरदार निभाते,
अच्छी ये नाट्यशाला है
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है।

कभी विरह की तपन मिले,
कभी मिलन से महकता मन
दुखों का अम्बार कभी तो,
कभी सुखों से भीगे तन
सुख-दुख का चक्रव्यूह ये,
गम है खुशी का प्याला है।
सच में…
ये जीवन बहुत निराला है॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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