कुल पृष्ठ दर्शन : 83

You are currently viewing रामलला आए अवध

रामलला आए अवध

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************

नगर अयोध्या धाम में, बसे राम के प्राण।
कण्ठहार रघुवर पुन:, आये जन कल्याण॥

हुई प्रतिष्ठा अवध में, पावन जन्म स्थान।
दीपशिखा आलोक से, ज्योतिर्मय भगवान॥

राम लला आये अवध, बीत गया इक वर्ष।
धन्य हुई भारत धरा, रामराज्य उत्कर्ष॥

मर्यादित कुल आचरण, उज्ज्वल राम चरित्र।
कौशलेन्द्र सीतारमण, भज लो नाम पवित्र॥

रघुनंदन सरसिज चरण, पूजें वैदिक रीत।
गाएँ मिल हम साथ में, राम नाम नवनीत॥

हर्षित है माँ भारती, अवधपुरी रघुवीर।
बालरूप छवि राम की, देख हाथ धनु तीर॥

निर्मल मनभावन छटा, बाल राम घनश्याम।
अभिनंदन स्वागत अवध, सिया राम अभिराम॥

शरणागतवत्सल विभो, रघुपति राघव राम।
सत्यकाम सियराम पद, जीवन हो सुखधाम॥

दुल्हन-सी सज चारुतम, नगर अयोध्या आज।
कोटि-कोटि जन आगमन, दर्शन रघुपतिराज॥

धर्म सनातन मांगलिक, सिया राम प्रतिमान।
त्रिविध पाप नाशक प्रभो, भारत का सम्मान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥