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राष्ट्र निर्माता और युगदृष्टा रहे ‘चाचा नेहरू’

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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‘बाल दिवस’ विशेष……….
पंडित नेहरू को उनकी विचारधारा से विरोधी हमेशा असफल व्यक्तित्व के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है,पर यह बात जरूर है कि,वर्तमान में भारत की जो भी उन्नति और विकास है,उसके मूल में उनकी सोच का ही प्रतिफल है,जिसे भुलाया जाना संभव नहीं हैl वर्तमान में जो शासक हैं उनके जन्म से पहले उस युगदृष्टा ने उज्जवल भारत के निर्माण में जो नींव रखी थी,उसी को आधार बनाकर ही देश विकसित हुआl
१४ नवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाने का औचित्य यह है कि पं. जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश का भविष्य मानते थे। उनकी यह अवधारणा सौ फीसदी सत्य है,क्योंकि आज जन्मा शिशु भविष्य में राजनीतिज्ञ,वैज्ञानिक,लेखक,शिक्षक,चिकित्सक,इंजीनियर या मजदूर कुछ भी बने,आखिर राष्ट्र निर्माण का भवन इन्हीं की नींव पर खड़ा होता हैl पं. नेहरू प्रौढ़ और युवाओं की तुलना में ज्यादा स्नेह और महत्व बच्चों को दिया करते थे। इसी भावना को समझते हुए समाज ने उन्हें चाचा नेहरू की उपाधि से विभूषित किया। इसलिए,आज भी १४ नवम्बर का दिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पं. नेहरू यूँ तो सारे जहान के गुण अपने अंतर्मन में समेटे हुए थे,पर राष्ट्र निर्माण की भावना,विश्व बंधुत्व की लालसा, अहिंसा एवं समाजवाद की अविरल धारा बहाने का भी उन्होंने पुरजोर प्रयास किया था।
सदियों की गुलामी के बाद जब देश को आजादी मिली तो आजादी के प्रथम दिन से ही देश की बागडोर अपने कर्मठ हाथों में संभाल ली। उनके राजनीतिक हाथ इतने मजबूत और सशक्त थे कि भारतीय जनता ने उनकी शासन करने की क्षमता को सराहा और पसंद किया। सत्तारूपी देवी ने उनसे प्रधानमंत्री की कुर्सी कभी नहीं छीनी,बल्कि जिंदगी ने ही उनका दामन छोड़ दिया। वे १३ वर्ष की उम्र में ही थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य बने। १५ वर्ष की उम्र में पंडित जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की। वहां से लौटकर सन्‌ १९१८ में उन्हें होमरूल लीग का सचिव चुन लिया गया। कुछ समय बाद ही उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इस स्वर्णकाल में उन्होंने देश में पंचवर्षीय योजनाओं को क्रियान्वित करवाकर जनमानस को राजनीतिक,सांस्कृतिक और आर्थिक ठहराव के दल-दल से बाहर निकाला और देश की तरक्की के नए आयाम स्थापित किए।
उन्होंने देश से बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पताका फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने उपनिवेशवाद,नव उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद,रंग भेद और अन्य कई प्रकार के भेदभावों को दूर करने के लिए विश्व के तमाम देशों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने का श्रेय प्राप्त किया। पंचशील सिद्धांतों को लागू करवाकर विश्व के देशों में शांति और सदभावना स्थापित करने में उनका अपूर्व योगदान था। नेहरूजी राजनीतिक,सामाजिक एवं आर्थिक चिंतक होने के अतिरिक्त उच्च कोटि के लेखक थे,जिन्होंने २ पुस्तकें-डिस्कवरी ऑफ इंडिया और ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री लिखी,जो विश्व प्रसिद्ध है। पं. नेहरू बच्चों के प्रिय चाचा होने के साथ-साथ एक सफल राजनीतिज्ञ,अर्थशास्त्री,चिंतक-साहित्यकार थे।
बच्चों में संस्कारों का विकास हमेशा अपने से बड़ों को देखकर ही होता है,इसलिए अपने आचरण को सही रखना भी उतना ही जरूरी है जितना बच्चे पर ध्यान देना। कहते हैं न ‘अगर ठीक से खाद डाली जाए,तो पौधा बहुत सुंदर होता है’ और संस्कार उसी खाद का काम करते हैं। आपा-धापी वाले समय में बाल दिवस हमें मौका देता है कि,हम अपने बच्चों के बारे में,उनकी परवरिश के बारे में कुछ सोचें। अक्सर देखा गया है कि किसी बच्चे की खराब आदतों को देखकर लोग फब्तियां कसते हैं कि इस बच्चे को अच्छे संस्कार नहीं मिले। क्या संस्कारों को जबरन किसी बच्चे पर थोपा जा सकता है,या कॉपी-पेन लेकर यह संस्कार उन्हें रटाए जा सकते हैं ? जब बच्चा चीजों को जानने और समझने लगता है,तभी से उसमें आदतों को विकास शुरू हो जाता है। ऐसे में इस बात का ध्यान जरूर रखा जाए कि,कहीं लाड़-प्यार में आप अपने बच्चों को संस्कारों से दूर तो नहीं कर रहे। बच्चे की सही परवरिश हो,इसके लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी हैl
बालक देश की बुनियाद हैं,वे कच्ची मिटटी जैसे होते हैं उन्हें जैसा मोड़ना चाहो,मुड़ जाते हैंl इसी समय उनमें जैसे संस्कार का बीजारोपण किया जाता है,वैसे ही उनका निर्माण होता हैl इसीलिए,ये बच्चे नींव हैं देश के विकास की,बशर्ते उन्हें सही मार्गदर्शन दिया जाएl.युगानुरूप उनमें तकनीकी ज्ञान की समझ पैदा करनी होगीl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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