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नशा मुक्ति के लिए जागरूकता जरूरी

राजकुमार जैन ‘राजन’
आकोला (राजस्थान)
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तम्बाकू और तंबाकूयुक्त नशीली वस्तुओं के साथ मादक पदार्थों का प्रयोग इन दिनों बहुत बढ़ गया है। बाजारों में जितनी दुकानें खाद्य पदार्थों की नहीं है,उससे अधिक नशे की वस्तुओं की हैं। एक बार नशे की गिरफ्त में आने के बाद संभलना बहुत मुश्किल हो जाता है,नशे की खुराक लगातार बढ़ती रहती है। इसकी हर खुराक,हर बार,जीवन के कुछ घण्टे आदमी से छीन लेती है। एक अवस्था ऐसी आती है,जब आदमी हार जाता है और नशा जीत जाता है।
यह घोर चिंताजनक है कि,नशे के नागपाश ने आज युवा वर्ग को बुरी तरह जकड़ रखा है। नशे की प्रवृत्ति समाज की भावी पीढ़ी को दीमक की तरह खोखला कर रही है,जिसके पीछे कमोबेश हम ही जिम्मेदार हैं।
नशे की परिधि में भांग,गांजा,स्मैक, हेरोइन,तम्बाकू,कोकीन,सुल्फा,चरस,शराब, बियर आदि सब वस्तुएं आ जाती हैं। स्मैक का सेवन और शराब-बियर पीना आज एक फैशन का रूप ले चुका है। विद्यार्थी वर्ग भी इस सर्वग्राही नशाखोरी के मकड़जाल में फंसता जा रहा है। इनके हाथों में किताब की जगह अपनी मौत का सामान होता है।
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों के मुताबिक यदि बचपन मे एक बार नशे की लत लग गई तो उससे छुटकारा पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। समय पर पैसे की उपलब्धता नहीं होने की वजह से नशे की आपूर्ति के लिए भी ये लोग अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं या भीख मांगना शुरू कर देते हैं। देश के महानगरों से निकल कर यह बुराई दूरदराज के गाँवों में भी पहुंच गई है।
किशोरावस्था में नशे की लत के लिए मनोवैज्ञानिक कई कारकों को दोषी ठहराते हैं,जिसमें लापरवाह अभिभावकों द्वारा बच्चों के सामने खुलेआम नशे का सेवन करना, बच्चों से नशे की सामग्री मंगवाना प्रमुख है। शाला के अध्यापक भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। वह भी ऐसी ही सामग्री बच्चों को खरीद लाने को कहते हैं और खा-पीकर कक्षा में पढ़ाते हैं।
समाज का प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि समाज नशामुक्त बनें। यहां तक कि नशे का लती व्यक्ति भी नहीं चाहता कि उसकी संतानें नशे की गिरफ्त में आए। इस सोच के बावजूद भी समाज में नशे की लत में वृद्धि हो रही है। इससे लगता है कि कहीं न कहीं समाज में और सरकार में इस नशावृत्ति को स्वीकारिता मिल चुकी है। वरना शराब, सिगरेट,तम्बाकू,गुटखा आदि बनाने का लाइसेंस रद्द कर बिक्री पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती है ? विभिन्न सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों की कवायद नशा मुक्ति की रही है,किंतु किसी का भी प्रयत्न कभी भी इसके मूल में जाने का नहीं रह। एक तरफ सरकार नशा उन्मूलन के लिए अभियान चलाती है। करोड़ों रुपए जन-जागरूकता के नाम पर विज्ञापनों पर खर्च करने और स्वैच्छिक संगठनों को बेमतलब भुगतान करती है,तो दूसरी तरफ राजस्व प्राप्ति के कारण इन उत्पादों को स्वीकृति भी देती है-यह कैसी त्रासद स्थिति है ?
भारत सरकार ने पिछले दिनों राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों में नशा मुक्ति सहायता के नाम पर योजना लागू की है। देश के विभिन्न हिस्सों में नशीले पदार्थों के बढ़ते इस्तेमाल पर रोक की दिशा में काम करने के लिए समन्वय समितियां बनाने पर भी विचार किया जाता रहता है,किंतु यह कार्य बहुत बड़ा व कठिन है,केवल सरकार के भरोसे छोड़ने पर नहीं होगा। दृढ़ इच्छाशक्ति आवश्यक है। अन्यथा,भ्रष्ट सरकारी नुमाइंदों के लिए नशामुक्ति अभियान हफ़्ता वसूली द्वारा पैसा कमाने का जरिया ही बन कर रह जाता है। सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का भी इस कार्य में पूर्ण योगदान अपेक्षित है। युवा वर्ग को नशे के अंधेरे कुएँ में धकेलने वाली शक्तियों,उन्हें प्रश्रय देने वाले सरकारी अधिकारियों पर भी कड़ी नजर रखे बिना और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के लिए त्वरित कठोर दण्ड प्रावधान के बिना नशा मुक्ति संदिग्ध ही है। अब चुप बैठने से काम चलने वाला नहीं है। ठोस और प्रभावी प्रयत्नों से ही इस गम्भीर समस्या के समाधान की दिशाएं खुल सकती हैं।
पिछले दिनों आकाशवाणी पर अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘नशा मुक्त भारत’ की बात दिल को छू गई थी। नशे के दलदल से देश को बाहर निकालने की श्री मोदी की हुंकार उम्मीद जगाती है। इसके लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति का जागरूक होना बेहद जरूरी है,तभी जर्जर होती भविष्य की धरोहर को बचाया जा सकेगा।

परिचय-राजकुमार जैन का उपनाम ‘राजन’ है। आकोला(राजस्थान)में २४ जून को जन्में श्री जैन की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)है। लेखन विधा-कहानी, कविता है,जिसमें पर्यटन,लोक जीवन एवं बाल साहित्य प्रमुख है। आपका निवास आकोला में है। आपकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है, जिसमें-‘नेक हंस’ और ‘लाख टके की बात’ आदि प्रमुख है। हिन्दी सहित राजस्थानी, अंग्रेजी में भी बाल साहित्य की इनकी ३६ पुस्तकों का प्रकाशन हों चुका है,तो हिंदी बाल कहानियों का मराठी अनुवाद २० पुस्तकों में प्रकाशित हों गया है। विशेष रुप से ‘खोजना होगा अमृत कलश’ (कविता संग्रह) पंजाबी,मराठी,गुजराती सहित नेपाली एवं सिंहली में अनुदित होकर श्रीलंका से प्रकाशित हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित करा चुके श्री जैन की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन सहित विभिन्न चैनल्स से हो चुका है। आपने सम्पादन के क्षेत्र में ‘रॉकेट'(बाल मासिक),’श्रमनस्वर’,’टाबर टोली’ एवं ‘हिमालिनी'(नेपाल)पत्रिकाओं को सहयोग दिया है। ‘राजन’ नाम से प्रसिद्ध बाल रचनाकार कईं मासिक पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके हैं। अनुवाद के निमित्त- ‘सबसे अच्छा उपहार’ बाल कहानी संग्रह पंजाबी,मराठी,उड़िया,गुजराती और अंग्रेजी में अनुदित हुआ है। हिन्दी बाल साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक पर संस्थापक के रुप में आप प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर २१ हजार रूपए का ‘पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार’(११ वर्ष से सतत) और ५ हजार राशि के सम्मान देते हैं। ‘राजकुमार जैन राजन फाउण्डेशन’ की स्थापना करने के साथ ही आप साहित्य,शिक्षा,सेवा एवं चिकित्सा में निरन्तर सक्रिय हैं। आपको प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में उदयपुर से ‘राजसिंह अवार्ड’ (२ बार),’शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’,राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (राज. सरकार),‘जवाहर लाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’,गिरिराज शर्मा स्मृति सम्मान,जयपुर द्वारा ‘समाज रत्न-२०१६’ और भारत-नेपाल मैत्री संघ द्वारा साहित्य सेतु सम्मान-२०१८ सहित १०१ से अधिक पुरस्कार-सम्मान प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। श्री जैन ने विदेश यात्रा में अमेरिका,कनाडा, मॉरीशस,मलेशिया,थाईलेंड,श्रीलंका और नेपाल आदि का भ्रमण किया है। आप विशेष रुप से हिन्दी के प्रचार-प्रसार सहित बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं।

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