सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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जश्न-ए-बहाराँ जब भी मनाया तुम्हारे बाद।
तन्हा ही ख़ुद को पाया हमेशा तुम्हारे बाद।
हमको ‘मिला न कोई भी तुम-सा तुम्हारे बाद।
अब कौन देगा हमको सहारा तुम्हारे बाद।
तुम ‘ही मिरे ह़बीब हो तुम ‘ही मिरे तबीब,
देखेगा कौन ज़ख़्म जिगर का तुम्हारे बाद।
यह भी नहीं ‘है याद तुम्हारी क़सम हमें,
दर्पन भी हमने देखा न देखा तुम्हारे बाद।
हर वक़्त ‘बहते रहते हैं आँखों से अश्के ग़म,
देखे न ख़ुश्क हमने ये दरिया तुम्हारे बाद।
इतना तो तुम बताओ यू्ँ जाने से ‘पेशतर,
मुझको ‘कहेगा कौन फिर’ अपना तुम्हारे बाद।
हमने चराग़े दिल भी जलाया मगर सनम,
होता नहीं कहीं भी उजाला तुम्हारे बाद।
तुम क्या गए कि फूल भी मुरझा गए ‘फ़राज़’,
सूना पड़ा है शहर का रस्ता तुम्हारे बाद॥