ममता बैरागी
धार(मध्यप्रदेश)
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ऐ वक्त जब तक तू मेहरबान था,
तब तक सारा ही जमाना
मेरी मुट्ठी में बंद था।
आज तू क्या रूठा,
ये हसीन लगने वाला जहां रूठ गया
देखते ही देखते,
अपना ही कोई पराया हो गया।
जख्म देने लगे वह,इतना सितम ढाया,
बहारों के मौसम में पतझर छा गया।
चाँदनी रातें,और दिल बेकरार था,
मन में अरमां लिए उड़ने को पंख था
आज धराशाई-सा मैं हो गया हूँ,
आकर देख मुझे,मैं क्या रह गया हूँ।
पथराई आँखों से किसी का इंतजार है,
आ,जाए हमसे कह दें,
उन्हें भी हमसे प्यार है॥
परिचय-ममता बैरागी का निवास मध्यप्रदेश के धार जिले में है। आपकी जन्म तारीख ९ अप्रैल १९७० है। श्रीमती बैरागी को हिन्दी भाषा का ज्ञान है। एम.ए.(हिन्दी) एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करके कार्य क्षेत्र-शिक्षण(सहायक शिक्षक ) को बनाया हुआ है। सामाजिक गतिविधि-लेखन से जागरूक करती हैं। संग्रह(पुस्तक)में आपके नाम-स्कूल चलें हम,बालिका शिक्षा समाज,आरंभिक शिक्षा और पतझड़ के फूल आदि हैं। लेखनी का उदेश्य-समाज में जागरूकता लाना है। आपके लिए प्रेरणापुंज- पिता तथा भाई हैं। आपकी रुचि लेखन में है।