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समृद्धता के लिए महत्वपूर्ण भागीदारी निभाएँ महिलाएं

ममता बनर्जी मंजरी
दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल)
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आज सम्पूर्ण विश्व आतंकवादी समस्या से जूझ रहा है और इसके कारगर समाधान ढूँढने के लिए हम सभी प्रयत्नशील हैं। यह सच है कि आतंकवाद के साये में महिलाएँ भी पल रही है,तब महिलाओं की मजबूती के लिए हमें कुछ अलग ढंग से संकल्प लेना चाहिए।
संकल्प कैसा हो,यह जान लेने से पहले आज हम कई बिंदुओं पर विचार करें।
इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं,उनके जीवन पर उनकी माताओं के उज्ज्वल चरित्र की छाप अंकित हुई है। चाहे वो माता जीजाबाई ,पुतलीबाई या कोई और हों। इनके जीवन के उत्थान का श्रेय आदर्श गृहलक्ष्मियों पर आधारित रहा है जो अशिक्षित या अल्पशिक्षित होते हुए भी गुरु की भाँति अपने पति और बच्चों को बुरे मार्ग पर चलने से रोकती थी,लेकिन आज की महिलाएँ शिक्षित होकर भी अपने परिवार के प्रति उत्तरदायित्व सुचारू रूप से नहीं निभा पा रही हैं। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका उद्देश्य नौकरी करना या फैशन,क्लब-समारोह या कोई और मनोरंजन विशेष रह चुका है जिसके कारण पति या बच्चों पर अपना ध्यान देने में या तो अक्षम हैं या ध्यान देना ही नहीं चाहती हैं। फलस्वरूप घर या समाज पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। आर्थिक प्रलोभन ही कहा जाए या भौतिक आवश्यकताएँ,जिनकी पूर्ति हेतु आज की महिलाएँ अपने पति या बच्चों को भ्रष्टाचार के पथ पर जाने से रोकती नहीं हैं,और यहीं से शुरुआत होती है इस भूल की,जो धीरे-धीरे भयंकर रूप लेती है। छोटे-मोटे प्रलोभन एक दिन घरों में आतंकवाद पैदा करने से नहीं चूकते,वरना आतंकवादी कोई जन्मजात नहीं बनता है।
बात सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है,बल्कि आज की महिलाएँ स्वयं आतंकवादी संगठनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कई जगह गरीबी, भुखमरी या अत्याचार के कारण भी आतंकवादी संगठनों में महिलाओं का जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। पहले जहाँ वे समाज में प्रेम,सदभाव और सुसंस्कृति का पैगाम देकर समाज को गढ़ने में अपना हाथ बँटाया करती थी,आज वे आतंकी संगठनों से जुड़कर जासूसी करना,हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना,सूचनाएँ एकत्रित करना,बम व गोले दागना,संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित आश्रय की व्यवस्था करlके पुरुषों की अपेक्षा अधिक बेहतर ढंग से काम कर रही हैं।
बदलते आर्थिक परिदृश्यों के अनुरूप जहाँ महिलाओं के भीतर अत्यधिक धन-लिप्सा बढ़ी है,वहीं विभिन्न आतंकवादी संगठन महिलाओं की इसी प्रवृति का लाभ उठाकर उन्हें इंसानी खून बहाने को प्रेरित कर रहे हैं,और जो नारी कल ममतामयी और श्रद्धामयी थी, आज वे हिंसामयी बन गई हैं।
इसलिए दिन विशेष पर या ताम-झाम करने से पहले हमें सबसे पहले वर्तमान युग में नारी की दशा और दिशा पर विचार करना चाहिए। कारण अन्य कोई भी क्यों न हों,कारणों के समाधान का रास्ता ढूंढना चाहिए।
आइए,भारत की हम महिलाएँ आज संकल्प लें कि हम पहले अपने घर में संस्कार पैदा करेंगी। बच्चों को प्रेम,सदभाव,भातृत्व और देशभक्ति का पाठ पढ़ाएँ और अपने घर के वातावरण में शुद्धता लाएँ। आर्थिक प्रलोभन हो या भौतिक,हम किसी के झाँसे में आकर कोई ऐसा काम न करें,जो हमें या हमारे पति या बच्चों को गलत रास्ते पर ले जाए। संकल्प यही कि देश कोे समृद्धशाली और मजबूत बनाने के लिए हम अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाएँ।

परिचय-ममता बनर्जी का साहित्यिक उपनाम `मंजरी` हैl आपकी जन्मतिथि २१ मार्च १९७० एवं जन्म स्थान-इचाक,हज़ारीबाग (झारखण्ड) हैl वर्तमान पता-गिरिडीह (झारखण्ड)और स्थाई निवास दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल) हैl राज्य झारखण्ड से नाता रखने वाली ममता जी ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की हैl आप सामाजिक गतिविधि में कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर नियमित साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,लेख सहित साहित्य के लगभग सभी विधाओं में लेखन हैl झारखण्ड के झरोखे से(२०११) किताब आ चुकी है तो रचनाओं का प्रकाशन अखबारों सहित अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में भी हो चुका हैl आपको साहित्य शिरोमणि, किशोरी देवी सम्मान,अपराजिता सम्मान सहित पूर्वोत्तर विशेष सम्मान और पार्श्व साहित्य सम्मान आदि मिल चुके हैंl विशेष उपलब्धि में झारखण्ड प्रदेश में एक साहित्य संस्था का अध्यक्ष होना और अन्य में भी पदाधिकारी होना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को आगे बढ़ाना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-झारखण्ड का परिवेश हैl आपकी विशेषज्ञता-छंदबद्ध कविता लेखन में हैl

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