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वृक्ष बिना सब धरा रह जाएगा

शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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एक बरगद की वृक्ष की विशाल लताएं हैं। देखकर ऐसा महसूस होता है कि, एक परिवार का बुजुर्ग अपने अनुभव, शक्ति, प्यार और अनुभव के साथ अपने पूरे परिवार को अपनी छत्र-छाया में लेकर खड़ा हुआ है। ऐसा लगता है, मानो जब तक वह विशाल लताएं खड़ी है, उसकी गहरी छाया है, वह अपने बच्चों पर कोई मुसीबत नहीं आने देगा।

पीपल, नीम या बरगद के घने वृक्ष की छाया, ठंडक, आश्रय हमें उतना ही सुकून देती है, जैसे हमारा घर और छोटे-बड़े कई असंख्य जीवों के लिए यह पेड़ भी घर होता है। छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े, पक्षी, बंदरों के साथ-साथ कई रेंगने वाले जीवों संग मनुष्य के बच्चे भी इन पेड़ों की छाया में खेलते- कूदते बड़े होते हैं। उनकी शाखों पर चढ़ने -उतरने और झूला झूलते हुए ही वह बड़े आनंद के साथ बड़े होते हैं। मनुष्य के जीवन से जुड़ी कहानी, घटनाएं, खुशी, सुख-दु:ख, प्रेम-प्रसंग, सावन के झूले जीवन के कई स्मरणीय क्षण के साक्षी यह वृक्ष होते हैं। अन्य पेड़-पौधों की पत्तियों, जड़, तनों से कितनी लाइलाज बीमारी ठीक हो जाती है। शुद्ध-साफ हवा हमारे जीवन को तरोताजा कर जीवन में स्फूर्ति भर देती है और जीने के लिए साँसें भी देती है, लेकिन हाँ हम नासमझ मनुष्य ही हमारे ऑक्सीजन के कारखाने को नष्ट करने पर आमादा हैं।
लाल संकेतक पर धूप में खड़े रहते हुए सब लोग पेड़ों की छाँव ढूंढते हैं। जहाँ पेड़ आसपास हो, तो उसी के नीचे सारे लोग रूक जाते हैं और संकेतक पर खड़े नहीं होते। वृक्ष का महत्व देखते हुए भी उसे नजर अंदाज करना मनुष्य के लिए एक खतरे की घंटी है। जिस चीज की महत्ता को समझते हुए भी अगर नजरअंदाज किया जाए तो वह जीवन के लिए खतरनाक साबित होगी। बढ़ते तापमान में झुलसते तन और जीवन को बचाने के लिए हमारे सिर पर वृक्षों के आशीर्वाद की छतरी अति आवश्यक है, जिसकी सुरक्षा के लिए सभी को मिलकर पहल करनी होगी।

परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”