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शिक्षा बनी व्यवसाय

शिवांकित तिवारी’शिवा’
जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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मन व्यथित है,आज बड़ी असहनीय वेदना हो रही है आज की इस गर्त में जा रही आधुनिक शिक्षा व्यवस्था को देखकरl आज शिक्षा को सिर्फ पैसों से तौला जा रहा हैl मतलब यहाँ तक शिक्षा की दयनीयता देखने को मिल रही है कि,जैसे बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान सिर्फ पैसों के लिये ही खोले गये हैं और शिक्षा को व्यवसाय का माध्यम बनाने के लिए पूरी तरह से संकल्पित हैं।
आर्थिक तौर पर अगर कोई कमजोर है और वह बड़े शिक्षण संस्थान पर प्रवेश पा जाता है,और समय पर वह अगर शिक्षण संस्थानों के शुल्क की अदायगी नहीं कर पाता तो उसे इतना परेशान किया जाता है कि,वह मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो जाता है। उसकी क्या परेशानी है,वह किन परिस्थितियों से गुजर रहा है,उसकी आर्थिक स्थिति का स्रोत सुदृढ़ है या कमज़ोर है,उससे उन्हें किसी प्रकार का कोई लेना-देना नहीं है,उसकी एक नहीं सुनी जाती उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है क्योंकि उन्होंने सिर्फ और सिर्फ पैसों की आवक के लिये ही शिक्षा को जरिया बनाया है,एक सशक्त हथकण्डे के रूप में शिक्षा को पूरी तरह से अपनाया है।
इस लचर शिक्षा प्रणाली के चलते अक्सर मध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुकात रखने वाले बच्चे उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तो पा जाते हैं,लेकिन उनको शिक्षण शुल्क जमा करने के लिए किस हद तक परेशान किया जाता है,उनका मानसिक शोषण किया जाता है,और उनके साथ अभद्रतापूर्वक व्यवहार किया जाता है जिससे वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। ऐसा होने पर उसके और परिवार वालों के सारे सपनों का अन्त हो जाता है।
शिक्षा जो,इस दुनिया का सबसे सशक्त और प्रभावशाली हथियार और शिक्षित होना हर मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है,पर अब व्यवसाय बन गया है।
भारत देश की प्रथा के अनुसार घर में बच्चों की किलकारियां गूंजते ही उसके माता-पिता कह देते हैं कि,मेरा बेटा बड़ा होकर चिकित्सक या अभियंता बनेगा और अन्ततः वह इस बात पर अडिग रहते हैं,लेकिन जब बेटे को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिल जाता है तो बस एक ही बात की समस्या आती है कि इतनी सारी शुल्क की अदायगी वह एक साथ कैसे करें,क्योंकि प्रवेश पाने वाले बच्चों में से कुछ बच्चों के पिता किसान या फिर छोटे व्यवसायी या फिर उनकी आय का स्तोत्र बहुत कम होता है। इससे वह समय में शुल्क नहीं दे पाते हैं,जिसकी होने वाली तकलीफ उनके बच्चे भुगतते हैं,और जब वह मानसिक प्रताड़ना को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। तब वह आखिरी रास्ते के रूप में आत्महत्या या आतंकवाद को चुनते हैं,जिससे उनके माता-पिता के सारे सपनों की बलि चढ़ जाती है।
सबके माता-पिता का एक ही सपना होता है कि,उसका बेटा-बेटी एक दिन उनके सपनों पर खरा उतर कर समाज में मेरा नाम बहुत ऊँचा करें,लेकिन शिक्षा माफियाओं का दिल भी नहीं पसीजता कि उसको क्या परेशानी है। उसको तो बस कुर्सी पर बैठकर हुकूमत चलाना है,और उसने हुकुम कर दिया कि,शिक्षण शुल्क चाहिये तो बस चाहिये। अब सामने वाले को इतना विवश किया जाता है कि,उसके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता सिवाय आत्महत्या के।
आज शिक्षा और शिक्षा की गुणवत्ता सिर्फ पैसे पर निर्भर करती है,मध्यम वर्गीय परिवार वालों का न कोई शिक्षण संस्थान साथ देता न कोई सरकार।
उच्च और निजी शिक्षण संस्थान सिर्फ और पैसों के लिये बनाये गए,जिनका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक व्यवसाय करना है,न उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता से मतलब हैं न छात्रों के भविष्य से,क्योंकि उनकी कई पीढ़ियों के लिये ये शिक्षा बहुत बड़ा व्यवसाय और आय का साधन हो गया है।
बस आखिरी बात कि,अगर आपके अन्दर थोड़ी-सी भी मानवीयता जिंदा है,चाहे आप कितना भी बड़ा शैक्षणिक संस्थान चला रहे हों,आपका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रखना होना चाहिये और शिक्षा को व्यवसाय न समझ कर आपको शिक्षा को मजबूती प्रदान करना चाहिये,जिससे आने वाले समय में शैक्षणिक गुणवत्ता में वृद्धि हो। आप शिक्षा की नींव को सशक्त करें,तभी किसी के सपने रूपी महल तैयार हो सकेगें और शिक्षा के क्षेत्र में अदभुत सफलता मिलेगा। लोगों का विश्वास शिक्षण संस्थानों और शिक्षा के प्रति बरकरार रहेगा।

परिचय–शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.)है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश)में बसेरा है। मध्यप्रदेश के श्री तिवारी ने कक्षा १२वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है,और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में कार्यरत होकर सामाजिक गतिविधि के निमित्त कुछ मित्रों के साथ संस्था शुरू की है,जो गरीब बच्चों की पढ़ाई,प्रबंधन,असहायों को रोजगार के अवसर,गरीब बहनों के विवाह में सहयोग, बुजुर्गों को आश्रय स्थान एवं रखरखाव की जिम्मेदारी आदि कार्य में सक्रिय हैं। आपकी लेखन विधा मूलतः काव्य तथा लेख है,जबकि ग़ज़ल लेखन पर प्रयासरत हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का है,और यही इनका सर्वस्व है। प्रकाशन के अंतर्गत किताब का कार्य जारी है। शौकिया लेखक होकर हिन्दी से प्यार निभाने वाले शिवा की रचनाओं को कई क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी स्थान मिला है। इनको प्राप्त सम्मान में-‘हिन्दी का भक्त’ सर्वोच्च सम्मान एवं ‘हिन्दुस्तान महान है’ प्रथम सम्मान प्रमुख है। यह ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-भारत भूमि में पैदा होकर माँ हिन्दी का आश्रय पाना ही है। शिवांकित तिवारी की लेखनी का उद्देश्य-बस हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में पहला स्थान दिलाना एवं माँ हिन्दी को ही आराध्यता के साथ व्यक्त कराना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-माँ हिन्दी,माँ शारदे,और बड़े भाई पं. अभिलाष तिवारी है। इनकी विशेषज्ञता-प्रेरणास्पद वक्ता,युवा कवि,सूत्रधार और हास्य अभिनय में है। बात की जाए रुचि की तो,कविता,लेख,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, प्रेरणादायी व्याख्यान देना,कवि सम्मेलन में शामिल करना,और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना है।

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