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शिक्षा बांट रही

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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हर पग शिक्षा बांट रही
रामायण रिश्तों में झांक रही,
वहीं महाभारत रणभूमि में
कर्मों को रिश्तों में आँक रही।

एक राम जहां थे धीर धरे
एक रणछोड़ गीता बाँच रही,
मर्यादा में थी एक भूमि
एक अमर्यादित ख़ाक रही।

सजी नारी को रणभूमि
दोनों ये विशेष एक बात रही,
वाटिका जहां सिया सुरक्षित
वहीं भरी सभा,
चीरहरण को आँखें ढांक रही।

संवाद-विवाद भाई का देखो
जहां भरत राज में,
मात्र रामराज की बात रही,
एक सिंहासन को बैरी भाई
जहां भाई-भाई में घात रही।

जरा नारायण की लीला देखो
दोनों में शिक्षा खास रही।
राम-कृष्ण थे रुप उसी के,
नर रुप में
अपने कर्मों को भी जांच रही॥

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