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सच या झूठ..

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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हरी आठवीं कक्षा का छात्र था। अचानक वो कक्षा-कक्ष के दरवाजे के सामने आकर गिरा। असल में वो दौड़ते हुए अचानक रुकने की कोशिश में सम्भल नहीं सका,और फिसलकर गिर गया। उठकर अध्यापक से सहमति लेकर कक्षा में गया।
अध्यापक जी की डपट पड़ी-“आज फिर देर।”
“सरजी साईकिल पंक्चर हो गई थी।”
(झूठ) उसके पास तो साईकिल है ही नहीं। वो तो पैदल(२ कि.मी.) आता-जाता है।
दरअसल,वो राशनदुकान की क़तार,फिर चक्की की कतार में लेट हुआ था। घर पर भी माँ ने खाना खाने को कहा तो कह दिया,भूख नहीं है। बाजार में मिठाई खा ली थी,(झूठ)। तू गुड़ की भेली बस्ते में रख दे। जाता-जाता रस्ते में खा के पानी पी लूंगा(छुपा हुआ सच)।
खैर…,हरी बेचारा था कितना बड़ा। महज १४ साल का,पर अपने ऐसे ही झूठों से वो चालीस का बन गया था। माँ को ढांढस देता,पिता का साथ देते-देते बड़ा हुआ था। अब किसी तरह पढ़-लिखकर नौकरी की बारी आई तो वहाँ भी अपने आपसे ग्यान,ध्यान,जानकारी,समझदारी में कम स्तरवालों से आरक्षण की मार खाता रहा। तहसीलदार,कलेक्टर के सपने लिये खुद से बहुत निम्न लोगों के मातहत तृतीय श्रेणी लिपिक बन गया। घर खर्च गुजारे के लिये पिता का सहायक बना।
अब तीसरी पारी थी ब्याह की। यहां भी घर की परिस्थिति,उसकी नौकरी, उसकी मायूस-सी मासूमियत आड़े आती रही। वक्त आने पर शादी हुई। हरी का अपना परिवार बना। अब वो धीरे-धीरे माँ और पत्नी के बीच बँटने लगा। दोनों की आकांक्षाओं को सम्भालता हुआ,खुद से समझौते करता,न चाहते हुए भी दोनों के बीच झूठ के सहारे लेता।
विषय सोचने का है कि,क्या हरी झूठा था,या उसकी परिस्थितियां जो उसे झूठ बोलने को मजबूर करतीं थीं।
हमारे वर्तमान परिवेश में ऐसे ही न जाने कितने हरी,श्याम,मोहन,नन्दू हैं। समाज,प्रान्त,देश में वर्चस्व-आधिपत्य रखने वाले लोगों से अनुरोध है कि इस ओर गौर करेंl ऐसे मजबूर-झूठ को मिटाकर सच सामने लाएं।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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