मानकदास मानिकपुरी ‘ मानक छत्तीसगढ़िया’
महासमुंद(छत्तीसगढ़)
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विशालता का द्योतक है सागर,बाकी अब मैं क्या कहूं,
सहनशीलता का प्रेरक है सागर,इससे ज्यादा क्या कहूं।
ओ तड़पते नदियों को देता है जगह सीने के अंदर,
कमजोरों का पोषक है सागर,इससे ज्यादा क्या कहूंll
जीवन निर्माण का संरक्षक है सागर,और मैं क्या कहूं,
तूफान-उफ़ान का भक्षक है सागर,बाकी मैं क्या कहूं।
संत-सुधारक,प्रेम-प्रचारक,सुख-दु:ख जिसका संगम,
मात-पिता-सा पालक है सागर,बाकी अब मैं क्या कहूंll