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नियति से हारा नहीं हूँ…

अनुपम आलोक
उन्नाव(उत्तरप्रदेश)
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जलधि-सा उन्मुक्त मैं ! पर-
चित्त से खारा नहीं हूँl
चातकों-सी साधना है-
नियति से हारा नहीं हूँll

पीर! पर्वत बन भले ही-
व्योम से कर ले मिताईl
वेदना उमडे़,घुमड़ कर-
श्वाँस से कर ले सगाईl
पर न मानूँगा,करुँगा,
कर्म का मैं यज्ञ पल-पल,
जिंदगी भी रुठ करके-
चाहे कर ले बेवफाईl
कर्म पथ का मैं पथिक हूँ-
टूटता तारा नहीं हूँl
चातकों-सी साधना है-
नियति से हारा नहीं हूँll

प्रेम हो पावन जगत में-
गंग की जलधार जैसाl
सूर्य-सा गतिमान,लेकिन-
धैर्य की मनुहार जैसाl
लक्ष्य निर्धारित नयन हों-
और उर संकल्प अविचल,
श्याम के अंतस अडिग,ज्यों-
राधिका के प्यार जैसाl
प्रीति पथ मेरा अटल,पर-
मरीचिका मारा नहीं हूँl
चातकों-सी साधना है-
नियति से हारा नहीं हूँll

चार भौतिक पल बिताए-
आपकी उर व्यंजना मेंl
प्रेम तब शाश्वत हुआ था-
देह की अभिव्यंजना मेंl
अंग का यौगिक समर्पण,
शीर्ष के स्पंदनों तक,
मुस्कराई तृप्ति भी तब-
मिलन की शशिरंजना मेंl
चिर उपासक हूँ मगर मैं-
स्वार्थ की कारा नहीं हूँl
चातकों-सी साधना है-
नियति से हारा नहीं हूँll

परिचय-अनुपम ‘आलोक’ की साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि है। अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ का जन्म १९६१ में हुआ है। बाँगरमऊ,जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मोहल्ला चौधराना निवासी श्री सिंह ने वातानुकूलन तकनीक में डिप्लोमा की शिक्षा ली है। काव्य की लगभग सभी विधाओं में आप लिखते हैं। गीत,मुक्तक व दोहा में विशेष रुचि है। आपकी प्रमुख कृतियाँ-तन दोहा मन मुक्तिका,अधूरी ग़ज़ल(साझा संकलन)आदि हैं। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको सम्मान में साहित्य भूषण,मुक्तक प्रदीप,मुक्तक गौरव,मुक्तक शास्त्री,कुण्डलनी भूषण, साहित्य गौरव,काव्य गौरव सहित २४ से अधिक सम्मान हासिल हुए हैं।

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