डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लाख मना करें कि उन्होंने अपने कांग्रेस विधायकों को नहीं भड़काया है, लेकिन उनकी इस बात पर कौन भरोसा करेगा ? विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे सौंपकर वह काम कर दिखाया है, जो कांग्रेस तो क्या, किसी भी दल के राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ। पहले कई बार दल-बदल हुए हैं, सरकारें गिरी हैं लेकिन किसी दल की इज्जत इस तरह से पहले कभी नहीं गिरी। सोनिया-राहुल कंपनी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उनके अपने कर्मचारी उन्हें शीर्षासन करा देंगे। यदि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पहले ही यह करिश्मा दिखा सकते हैं तो अध्यक्ष के तौर पर तो वे माँ-बेटे की मिल्कियत को भी उलटवा सकते हैं। राजस्थान में हुए घटना-क्रम की यही व्याख्या दिल्ली से भेजे गए दूत दल मालिकों को देंगे। श्री गहलोत अपने हाथ झाड़ना चाहेंगे, लेकिन लगता यह है कि अब उनका अध्यक्ष पद ही झड़ जाएगा। यदि सोनिया अब भी श्री गहलोत को अध्यक्ष बनाने पर आमादा होंगी तो वह बहुत बड़ा खतरा मोल लेंगी। यदि गहलोत अब राजस्थान के मुख्यमंत्री ही बने रहे तो भी वे गले की फाँस बन जाएंगे। उनका कद माँ-बेटे से भी ऊँचा हो गया है। अशोक गहलोत के लिए यह मारवाड़ी कहावत लागू हो रही है- ‘गोड़गड़ी रे, गोड़गड़ी। सासू छोटी, बहू बड़ी॥
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के पिछले चुनाव में भी रोचक नौटंकियां हुई थीं, लेकिन इस चुनाव ने सिद्ध किया है कि देश की पार्टियों में अब आंतरिक लोकतंत्र की शुरुआत हो रही है। राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों ने जो सत्साहस किया है, वह सभी दलों के शीर्ष नेताओं को संदेश दे रहा है कि आप अपने वाली चलाना बंद कीजिए। ऊपर से मनचाहे चहेतों को थोपना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि माँ-बेटा नेतृत्व अशोक गहलोत के साथ दुर्व्यवहार करेगा तो राजस्थान से भी कांग्रेस का सफाया वैसा ही हो जाएगा, जैसा पंजाब से हुआ है। राजस्थान में चली यह नौटंकी सबसे ज्यादा खुश किसे कर रही होगी ? शशि थरुर को! और सबसे ज्यादा दुखी, किसको ? राहुल गांधी को! क्योंकि, राहुल ने ही केरल से मंत्र मारा था कि ‘एक आदमी, एक पद।’ अब आदमी और पद, दोनों ही हवा में लटक गए हैं। अशोक गहलोत चाहे तो अपनी नई पार्टी खड़ी करके राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। वे अन्य कई कांग्रेसी नेताओं की तरह विधायकों को लेकर भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। इस घटना ने अशोक गहलोत को महानायक की छवि प्रदान कर दी है। अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को केरल में करेले का रस पिला दिया है। अब राहुल को तुरंत दिल्ली आकर भारत जोड़ो की बजाय कांग्रेस जोड़ो अभियान चालू करना पड़ेगा।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।