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हिमालय की चिंघाड़

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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ज्योतिर्मठ की दरारें महज दरारें नहीं हैं,
हिमालय और धरती का भीषण रुदन है
भगवन शंकराचार्य की उध्वस्त होती,
तपोभूमि का क्रंदन और आक्रंदन है।

आज मुझे घिर-घिरकर याद हो रही है,
विलुप्त हो चुकी उस मैया सरस्वती की
जो कभी गंगा-सी कल-कल बहती थी,
तट पर तरुदल के वैभव में रहती थी।

उसी के तट पर जन्मी थी सनातन सभ्यता,
जाने कितनी लहराती थी औषधिय तरुलता
काल के गाल समा गई प्रिय तटिनी सरस्वता,
बार-बार जहन में उठ रही है प्रश्न की ये खता।

क्या अब हिमालय और गंगा की बारी है ?
क्योंकि, दसों-दिशाओं में तो प्रगति हमारी है
तरक्की के चलते हिमालय पर्यटन हो गया,
इतनी तरक्की हुई कि तीर्थाटन पट गया।

मित्रों! हिमालय छुट्टियाँ मनाने का प्रदेश नहीं है
रील बनाने, फोटो शूट का परिवेश नहीं है,
वह हमारी प्राचीन सभ्यता की तपोभूमि है।
सन्यस्त जीवन की दिव्य हमारी देवभूमि है।

हिमालय असभ्यता की ऐशगाह भी नहीं है,
ना ही बाप हिमालय चरवाहों की चरागाह है
वो दिव्य तपोभूमि है रे ! कोई भी मत जाना वहाँ,
जाकर उत्श्रृंखल क्रिया-कलाप कभी मत करना वहाँ।

हिमालय ट्रेकिंग या, बोटिंग करने की स्थान नहीं,
वहा तो मन शांति ढूंढने के लिए जाया करते हैं
अपना परलोक सुधारने के लिए जाया करते हैं,
सन्यस्त जीवन पाने वहाँ यात्रा किया करते हैं।

नींद से जाग उठो हिमालय का दोहन करनेवालों!,
हिमालय हमारे ज्वलंत अस्तित्व का प्रश्न है
मोक्षदायिनी गंगा हमारी सभ्यता का जश्न है,
गंगाजल अमृत है, बिजली का कच्चा माल नहीं।

हिमालय अवधूत है, पैसा कमाने का जंजाल नहीं,
पहाड़ों का विकास, विकास नहीं, बनाना भकास है
पहाड़ों को यथावत रहने दो, वे तीर्थ हैं हमारे,
नदियों को कल-कल बहने दो, वे शीर्ष हैं हमारे।

मित्रों, हिमालय की दरारों को समझना होगा,
प्रकृति की तुम और अधिक परीक्षा मत लेना।
अपने अपराधियों को वह छोड़ती तनिक नहीं है,
इनकी फ़िक्र कीजिए, यह बस संसाधन नहीं हैं॥

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला- नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’
(हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह),
‘पंचवटी के राम’ (गद्य और पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’
(काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘रामदर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज एवं नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।