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अंग्रेजी को प्रश्रय और हिंदी पर वार, वाह राजस्थान सरकार!

रविदत्त गौड़
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कुछ दिनों पूर्व राजस्थान विधानसभा में सरकार के एक मंत्री ने बयान दिया कि, “राजस्थानी को राजभाषा बनाने के लिए कानून की तैयारी:मंत्री कल्ला बोले-२० साल से केंद्र में अटका प्रस्ताव!”
इस प्रस्ताव पर वहां के पक्ष-विपक्ष दोनों सहमत हैं। अब सही मायने में देखा जाए तो राजस्थान में बहुत-सी बोलियाँ बोली जाती हैं। चूंकि, हमारा प्रदेश कई अन्य राज्यों से सीमा भी साझा करता है, अतः वहां की बोलियाँ भी सम्बंधित सीमाक्षेत्रों में बोली जाती हैं। मेरी जानकारी के अनुसार मेवाती, अहीरवाटी, ढ़ूंढ़ाड़ी, गुजराती, मालवी आदि कई बोलियाँ या इन सबका किसी न किसी अंश में सम्मिश्रण राजस्थान के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोग आपसी बोलचाल में प्रयोग करते हैं, भले ही उनमें कोई लेखन हो या नहीं हो।
मैं राजस्थान की उक्त बोलियों में सभी को अधिकांशतः समझ लेता हूँ। कभी-कभी राजस्थानी भाषा के कार्यक्रम भी देख लेता हूँ। चंदबरदाई, विजयदान देथा, नंद भारद्वाज, कन्हैयालाल सेठिया आदि को थोड़ा-सा पढ़ा भी है। मैं न तो एक भाषाविज्ञानी हूँ और न ही भाषा विशेषज्ञ, पर इस सबके बावज़ूद मुझे कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि जिस भाषा को ‘राजस्थान’ कहकर राजस्थान सरकार राजभाषा बनाने का कानून लाने वाली है, वह पूरे राजस्थान की बोलियों का प्रतिनिधित्व करती है। विजयदान देथा जी की एक समय में राजस्थान के एक अखबार में रचना-श्रृंखला राजस्थानी में छपती थी, पर उनकी रचनाओं को राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लोग पूरी तरह समझ लेते होंगे, मुझे संदेह है।अतः जिस राजस्थानी भाषा को राजभाषा का सम्मान देने की प्रक्रिया शुरू हो रही है, उसे राजस्थान की कितने प्रतिशत जनता बोल पाएगी व उसमें सहजता से काम कर पाएगी, उसके लिए एक ईमानदार सर्वेक्षण की आवश्यकता है।
यहां पर एक विशेष विषय का उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है और वह है ‘अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूल’। यह राजस्थान सरकार की अद्यतन पहल है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान अंग्रेजी में शिक्षा पर राजस्थान की प्रशंसा करते हुए, इसे बढ़ाने पर काफ़ी जोर दिया था। वर्तमान राजस्थान सरकार इस दिशा में बड़े जोर-शोर से काम कर भी रही है।
अब प्रश्न यह उठता है कि, राजस्थानी भाषा के राजभाषा बनने के बाद वह कौन-सी भाषा को पदच्युत करेगी। यह तो स्पष्ट है कि जिस तरह से अंग्रेजी को वर्तमान राजस्थान सरकार प्रश्रय दे रही है, व वहाँ का विपक्ष भी उसे मौन समर्थन दे रहा है, तो ऐसी परिस्थिति में अंग्रेजी का राजपद तो बना ही रहेगा।अतः बलि हिंदी की ही दी जाएगी। यह ऐसा कदम होगा, जो हिंदी को भारत भर में एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा के रूप में मान्यता दिलवाने में एक और रुकावट बनेगा।
मैं स्थानीय बोलियों का प्रबल पक्षधर हूँ। मैं चाहता हूँ कि देश की हर बोली की मूल पहचान बनाए रखने हेतु सरकारी व निजी, हर स्तर पर प्रयास किए जाएँ। राजस्थान में मात्र कुछ राजनेताओं व गिने-चुने विद्वानों की उक्त पहल पर भले ही राजनीतिक कारणों से कोई विरोध न हो, पर प्रश्न यह है कि क्या स्थानीय बोलियों के संरक्षण हेतु आज तक कोई गम्भीर प्रयास किए गए या किए जाएंगे ?
राजस्थान की राजभाषा राजस्थानी बनाने के बाद वहां की बाकी स्थानीय बोलियों के लुप्त होने का डर तो है ही, साथ ही हिंदी को भी अभयदान की आवश्यकता होगी। इस कार्यवाही का व्यापक प्रभाव पड़ेगा, चूंकि देश के विभिन्न भागों से अन्य भाषाओं के लिए भी समान मांगें उठेंगी। इसके अलावा हिंदी को देशभर की राजभाषा से राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने हेतु आज तक जो संघर्ष हुए हैं, उनको एक तगड़ा झटका लगेगा। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को प्रतिष्ठित करवाने का जो भारत का लक्ष्य है, उसमें भी अड़चनें आ सकती हैं। हिंदी इन सब कारणों से कमज़ोर तो अवश्य होगी। यह स्पष्ट है कि निजी स्वार्थवश हम अपना बहुत बड़ा नुकसान करेंगे, चूंकि हिंदी के कमज़ोर होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का सम्मान भी प्रभावित होगा।
मेरा अनुरोध है कि हर परिस्थिति में हमारा प्रयास हिंदी को बढ़ावा देने का होना चाहिए। हमारा ध्येय हो कि वह शीघ्रातिशीघ्र अंग्रेजी का स्थान ले। उस दिशा में किए जाने वाले हर प्रयास के पीछे गंभीरता की आवश्यकता है।स्थानीय बोलियों को भी समुचित सम्मान मिले और हर स्तर पर उनके संरक्षण की औपचारिक व्यवस्था हो।इस पूरी कवायद में इतना सुनिश्चित किया जाए कि हिंदी अपनी गतिशीलता बनाए रखे व हमें उसमें काम करते हुए गर्व का अनुभव हो। अंग्रेजी सीखने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि अन्य भाषाएं भी लोग सीख सकते हैं, पर जो महारानी का पद उसे हमने दिया हुआ है, उस पद पर अधिकार पूर्वक हिंदी को स्थापित किया जाए। इस सबके बीच स्थानीय भाषाओं व बोलियों को भी समुचित सम्मान व संरक्षण मिलता रहे उसके लिए अलग से आधिकारिक व्यवस्था की जा सकती है। आशा है सम्बंधित महानुभावों तक मेरा यह संदेश पहुंचेगा ?

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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