डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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पुस्तक समीक्षा…
जिस रफ़्तार से समय गतिमान हुआ दिखाई देता है, उससे प्रतीत होता है कि, रफ़्तार ने मनुष्य से उसका समय ही चुरा लिया है। छोटा हो या बड़ा, जिसे देखो यही कहता प्रतीत होता है,-“समय ही नहीं है…।” एक समय था जब घरों में बच्चों के लिए तरह-तरह के समाचार-पत्र, बाल पत्रिकाएँ आदि आया करती थीं और उन्हें बच्चे बड़े चाव से पढ़ा करते थे। वर्तमान में समय और मनुष्य के ताल-मेल को देखते हुए लघु कथाएँ किसी वरदान से कम नहीं है। हाल ही में नीलम राकेश जी (लखनऊ) का लघु कथा संग्रह ‘गुरु दक्षिणा’ पढ़ा। ९५ पृष्ठ के संग्रह में कुल ६० लघु कथाओं का संकलन है। नीलम जी ने ‘गुरु दक्षिणा’ संग्रह में प्यार की ऊष्मा, भूमिका, शिक्षा, क्षमाशीलता, चोर, मुखौटा, फालतू बातें, आईना, बदलाव, नजरिया, एक नाव के सवार, माँ सिर्फ माँ होती है और लालच आदि विषयों को लिया है। लघु कथा समय की माँग है। कम शब्दों में बड़ी बात कह जाना ही तो लघु कथा है। ऐसा प्रतीत होता है कि, लघु कथा का आकार छोटा होने के कारण कुशल लघु कथाकार शब्दों की मितव्ययिता को बखूबी समझता है। लेखन के दौरान ऐसे वाक्यों, संवादों, शब्दों आदि का प्रयोग करता है कि, थोड़ा कहे, ज्यादा समझाए। प्रत्येक बात की व्याख्या की जाए, यह जरूरी नहीं। बहुत से तथ्य अथवा अंश पाठकों की कल्पना और विवेक पर छोड़ दिए जाते हैं अर्थात् कथाकार कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह देता है।
घर में चोरी के उपरांत बेटी की शादी की चिंता में सरला का बिस्तर पकड़ना और नौकरानी के पति की मृत्यु के बाद बच्चों के लिए काम पर लौटने वाली सीख को नीलम जी शब्दों के जाल को बुनते हुए ‘गुरु दक्षिणा’ लघु कथा में लिखती है –
“गुरु दक्षिणा ?” आश्चर्य से मैंने पूछा।
“मैंने फैसला किया है कि, जिस रमिया ने जीवन का इतना बड़ा पाठ मुझे पढ़ाया है, मैं गुरु दक्षिणा में उसके एक बेटे की पूरी शिक्षा की जिम्मेदारी उठाऊँगी। आज पहली किश्त के रूप में मैंने इसका दाखिला स्कूल में करवा दिया है।”
‘गुरु दक्षिणा’ लघु कथा में हौंसला, साहस, हृदय परिवर्तन, परोपकार आदि के भाव स्पष्ट दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं, पाठकों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष यह संदेश भी मिलता है कि, गुरु मात्र विद्यालयों में ही विद्यमान नहीं है, बल्कि जीवन में जो कोई भी जीवन का पाठ पढ़ा दे, वही गुरु होता है। गुरु की कोई आयु, धर्म या मजहब नहीं होता। गुरु छोटा या बड़ा किसी श्रेणी का हो सकता है।
‘दुनियादारी’ लघु कथा में मतलबपरस्त और गिरगिट की तरह रंग बदलते रिश्तों पर करारा व्यंग्य करते हुए लेखिका लिखती हैं कि, बच्चे को जन्म देते ही बहू ने सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया। एक तरफ मातम था तो, दूसरी ओर वंश बेल बढ़ने की अपार खुशियाँ। सास को बहू के असमय जाने का कोई विषाद न था, किन्तु पोते की अनंत खुशी थी। ऐसे में बच्चे की बुआ कहती है-“माँ भाभी के घर वाले आए हैं।” सुनते ही माँ दहाड़े मार कर रोने लगीं। इस रुलाई में पूरा परिवार शामिल था। आखिर दुनियादारी तो निभानी थी।
नीलम जी की सभी लघु कथाएँ असामाजिक तथ्यों पर सीधा प्रहार करती हैं और पाठकों को चिंतन-मनन के लिए विवश करती हैं कि, जागो! समय और हालात स्वयं नहीं बदलते, उसे बदलने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर गुरु चाणक्य का चित्र अंकित किया गया है, जो आकर्षण का बिन्दु है। कथाओं की भाषा बहुत ही सरल, सहज, रोचक एवं प्रतीकात्मक होने के कारण पाठकों के रुझान को बढ़ाएगी ।
बेहतरीन और उम्दा लघु कथाओं के लिए नीलम जी को अनेक बधाई एवं शुभकामनाएँ। यही शुभकामनाएँ कि, आपकी कलम यूँ ही सतत गतिमान रहे और समाज लेखन और विचारों से यूँ ही लाभान्वित होता रहे।
परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl