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सिर चढ़ कर बोलने लगा है अंगूठे का महात्मय-सुनीता मिश्रा

साहित्यिक प्रतियोगिताएं जुगाड़ का शतरंजी खेल-सिद्धेश्वर

पटना (बिहार)।

अंगूठा संस्कृति कुछ वक्त के लिए अवश्य लोप हो गई, किंतु वर्तमान समय के इस तकनीकी युग में अंगूठे का महात्मय सिर चढ़ कर बोलने लगा है। आज श्रेष्ठता मापक यन्त्र बन साहित्य इस तराजू में तुलने लगा है। किसी भी रचना पर जितना ज्यादा अंगूठा परवान चढ़ेगा, वह रचना उतनी ही ऊँचाई पर होगी।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कवि-कथाकार सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित आभासी कार्यक्रम ‘तेरे मेरे दिल की बात’ में यह उद्गार मुख्य अतिथि वरिष्ठ लेखिका सुनीता मिश्रा ने व्यक्त किए। इस ३० वे भाग में ‘साहित्यिक प्रतियोगिता एवं सृजनात्मक लेखन’ के संदर्भ में
सिद्धेश्वर ने कहा कि, मैं तो कहूंगा कि, प्रतियोगिता की कोई भी प्रणाली हो, वह चंद लेखकों को ही उत्साहित और अधिकांश लेखकों को निरुत्साहित करती है। हम कह सकते हैं कि प्रतियोगिता की भावना हमारे भीतर सृजनात्मक शक्ति को ऊर्जा देती है, लेकिन ऐसा तभी होता है, जब प्रतियोगिता का आधार निष्पक्ष, निर्भीक और तर्कपूर्ण हो। जब प्रतियोगिता विवादों से घिर जाती है, जुगाड़ का शतरंजी खेल बन जाती है, पैरवी और रिश्वत के आधार पर मूल्यांकित होती है, तब ऐसी प्रतियोगिताएं साहित्य या साहित्यकार का भला नहीं करती है।
सिद्धेश्वर द्वारा व्यक्त विचार पर ऋचा वर्मा ने कहा कि, हमें चाहिए कि एक ‘लाइक’ का बटन दबाने से पहले उस कृति को जांच-परख लें, ताकि भेड़ चाल के चक्कर में स्तरहीन साहित्य समाज में अपठनीय कृति को बढ़ावा ना दे।
निर्मल कुमार डे, विजय कुमारी मौर्य, एकलव्य केसरी, सुधा पांडे, राजेंद्र राज और सपना चंद्रा आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।