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अनमोल मोती

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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रक्षाबंधन विशेष………


‘रक्षाबंधन’ के सिर्फ २ दिन बचे थे,कमला बड़ी उदास थी कि वह इतनी दूर जाकर बेटी को कैसे लाए ? उसका १० साल का बेटा हर्षित कई बार पूछ चुका था कि माँ दीदी आएगी न ? रक्षाबंधन पर ? मुझे दीदी से राखी बंधवाना है,मुझे दीदी की बहुत याद आती है। मेरे सब दोस्त अपनी बहिनों से राखी बंधवाते हैं,मुझे भी दीदी से राखी बंधवाना है,माँ आप कहें तो मैं दीदी को लेने जाऊँ ? कमला हर्षित की उत्सुकता भरी बातें सुनकर उसे बाँहों में भर लेती है-बेटा तू अभी बहुत छोटा है,बड़ा हो जाए तब दीदी को लेने जाया करना। कमला की आँखों से अश्रुधार निकल पड़ती है ।
बहुत हँसते-खिलते उसके छोटे से परिवार को न जाने किसकी नज़र लग गई थी। २ वर्ष पहले उसके पति का एक बीमारी के चलते देहान्त हो गया था। तब से दोनों बच्चों की शिक्षा और बुज़ुर्ग सासू माँ के जीवन यापन की जिम्मेदारी कमला पर आन पड़ी थी। कमला हायर सेकंडरी पास थी,तो कम्पनी के प्रबंधक ने परिवार के हालात को समझते हुए उसके पति के स्थान पर कम्पनी में लिखा-पढ़ी की छोटी-सी नौकरी दे दी थी। इसी ८ हजार रुपए महीने की नौकरी के सहारे कमला अपने दोनों बच्चों और सासू माँ के साथ जीवन यापन कर रही थी। अभी इसी वर्ष उसने एक अच्छा रिश्ता आने पर निकिता का विवाह अपनी हैसियत से कर दिया था। लड़का प्राइवेट कम्पनी में नौकरी कर रहा था। कमला ने कुछ दिन पहले ही दामाद जी को फोन कर निवेदन किया था कि आप और निकिता राखी पर एक दिन का समय निकाल कर आ जाओगे तो बहुत ख़ुशी होगी,बिटिया की बहुत याद आ रही है।
छुट्टी मिल गई तो मैं ज़रूर आने की कोशिश करूँगा-दामाद ने आशा बंधाई।
आज रक्षाबंधन की पूर्णिमा है,पूरा शहर राखियों, कपड़ों,और मिठाई की दुकानों से सजा हुआ है, बहिन बेटियों का उत्साह और शहर की रौनक देखते ही बनती है। अजीब संस्कृति है भारत की,यहाँ जाति-पांति,धर्म-भाषा,अमीरी-गरीबी से कोई फर्क नहीं पड़ता। हर परिवार अपने-अपने स्तर से त्यौहार को बहुत उत्साह पूर्वक मनाते हैं।
हर्षित सुबह से नए कपड़े पहनकर,तैयार हो दरवाज़े की ओर टकटकी लगाए हुए था कि कब उसकी प्यारी दीदी आएगी और उसे राखी बांधेगी ?
माँ ने समझाया-बेटा कुछ खा ले,दीदी आएगी,तब राखी बंधवा लेना।
नहीं माँ, मैं दीदी आएगी तब उनसे राखी बंधवा कर उनके साथ ही खाना खाऊँगा।
बालहठ भी राजहठ से कम नहीं होता…?
और भोले के भगवान होते हैं,वे कहीं न कहीं से अपने भोले-भाले निश्छल भक्त की लाज ज़रूर रखते हैं।
दोपहर के २ बजने वाले थे,भूखा-प्यासा हर्षित अपनी दीदी के आने की राह निहार रहा था…। शायद इसीलिये भाई-बहिन का प्रेम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ प्रेम माना जाता है।
अचानक एक ऑटो रिक्शा हर्षित के घर के सामने आकर रुकी…,और उसमें से उसकी प्यारी दीदी और जीजू हर्षित की ओर दौड़ पड़े…। हर्षित को अपने गले से लगाकर निकिता की आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। पास ही में खड़ी कमला और उसकी सासू माँ की भी आँखें भीग रहीं थी उनकी आँखों से निकले ये प्रेम के वे ‘अनमोल मोती’ थे,जिनकी क़ीमत किसी दौलत से नहीं आँकी जा सकती।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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