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अनुच्छेद ३७० की तरह हटाया जा सकता है ३४८ को भी-न्यायमूर्ति कोचर

मुम्बई (महाराष्ट्र)।

जिस प्रकार भारत सरकार ने इच्छाशक्ति दिखाते हुए अनुच्छेद ३७० को हटाया, उसी प्रकार सरकार चाहे तो उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में जनभाषा में न्याय के लिए अनुच्छेद ३४८ को भी हटा सकती है या संशोधित कर सकती है। न्यायाधीशों को तो संविधान के अनुसार ही चलना है।
यह विचार ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘जनता की आवाज़ फाउंडेशन’ द्वारा ‘जनभाषा में न्याय’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्ष पद से मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजन कोचर ने व्यक्त किए। संगोष्ठी में इलाहाबाद, चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता नवीन कौशिक ने बताया कि, उन्होंने अनेक विधायकों के हस्ताक्षर करवाकर हरियाणा सरकार द्वारा उच्च न्यायालय की भाषा हिंदी करने के लिए राष्ट्रपति को प्रस्ताव भिजवाया है। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने बताया कि पटना उच्च न्यायालय में हिंदी में न्याय को लेकर आने वाली बाधाओं को उन्होंने किस प्रकार संघर्षपूर्ण ढंग से पार किया और वे उच्च न्यायालय मैं याचिकाएं लगाना और बहस केवल हिंदी में ही करते हैं।दिल्ली के भाषासेवी चौधरी हरपाल सिंह राणा ने विभिन्न अदालतों में हिंदी के प्रयोग को लेकर किए गए प्रयासों और संघर्ष की जानकारी प्रस्तुत की। मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संतोष आग्रे ने जन भाषा में न्याय के लिए संघर्षरत देश के सभी लोगों को एकजुट होने की बात कही। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने विभिन्न स्तरों पर जनभाषा में न्याय में आने वाली बाधाओं का जिक्र करते हुए उस संबंध में संगठित प्रयास करने की बात कही।
संगोष्ठी में प्रदीप कुमार, श्री मधुकांत सहित डॉ. बाजपेई, नवीन कौशिक, इंद्रदेव प्रसाद तथा श्री राणा को न्यायमूर्ति ने वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान २०२१-२०२२ से सम्मानित किया।
संगोष्ठी का संचालन व विषय प्रवर्तन करते हुए सम्मेलन के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने बताया कि किस प्रकार संविधान का अनुच्छेद ३४८ भाषा के मामले में संविधान के अनुच्छेद ३४३,३४५,३५० और ३५१ को गौण बनाते हुए न्यायपालिका को भारत संघ, जनतंत्र और देश की जनता से भी ऊपर अलग सत्ता बना रहा है।
इसके पूर्व जनता की फाउंडेशन के अध्यक्ष सुंदरलाल बोथरा ने दोनों संस्थाओं के अभियान की जानकारी दी। कार्यक्रम में विनोद चौरड़िया मुख्य अतिथि और महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के निवर्तमान कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे अतिथि रहे। कानबिहारी अग्रवाल ने अतिथि परिचय दिया। रितेश पोरवाल ने धन्यवाद प्रस्तुत किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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