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अफगान की ओर मैत्री के भारतीय कदम

ललित गर्ग
दिल्ली

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जब दुश्मनी निश्चित हो जाए तो उससे दोस्ती कर लेनी चाहिए-इस एक पंक्ति में फलसफा है,कूटनीति है,अहिंसा है,मानवीयता है एवं जीवन का सत्य है और यही भारतीयता भी है। इसी भारतीयता का एक अनूठा उदाहरण तमाम विपरीत स्थितियों के बावजूद अफगानिस्तान की मदद करके भारत ने प्रस्तुत किया है। भारत ने फिर से सहयोग, संवेदना एवं मानवीय सोच से कदम बढ़ाया है। संकट से जूझ रहे अफगान नागरिकों के लिए यहां से भारी मात्रा में जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेजी गई है। यह भारत का सराहनीय कदम है,जो मानवीयता से जुड़ा है।
समस्या जब बहुत चिन्तनीय बन जाती है तो उसे बड़ी गंभीरता एवं चातुर्य से नया मोड़ देना होता है। भारत ने ऐसा ही किया है। जबसे अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम हुई है,तबसे वहां भारत की गतिविधियां लगभग रुकी हुई थीं। वहां भारत द्वारा जारी विकास के आयाम भी अवरुद्ध हो गए थे। तालिबानी मानसिकता एवं भारत विरोधी गतिविधियों के कारण शुरू में समस्याएं अनेक रही। चीन और रूस से तालिबान की सत्ता को समर्थन देना भी एक समस्या रही है। भारत के सामने एक समस्या यह भी थी कि उसे अमेरिका का रुख भी देखना था। अमेरिका को पसंद नहीं कि कोई देश अफगानिस्तान की मदद करता। जब उसकी सेना वहां से हटी,तभी तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था। इसलिए दुनिया के वे सभी देश तालिबान के विरोध में खड़े थे,जो अमेरिका के मित्र थे,लेकिन इन समस्याओं के बावजूद भारत का एक स्वतंत्र वजूद भी रहा है, उसकी सोच राजनीति के साथ-साथ मानवीय एवं उदारवादी रही है। शायद यही वजह है कि भारत ने एक बार फिर अफगानिस्तान की जनता की खेर-खबर लेना जरूरी समझा है।
आज अफगानिस्तान के सम्मुख संकट इसलिए उत्पन्न हुआ कि वहां सब कुछ बनने लगा,पर राष्ट्रीय चरित्र नहीं बना और बिन चरित्र सब सून…। तभी आतंकवाद जैसी स्थितियों के लिए उसका इस्तेमाल बेधड़क होने लगा। अहिंसा और शांति चरित्र के बिना ठहरती नहीं,क्योंकि यह उपदेश की नहीं, जीने की चीज है। उसे इस तरह जीने के लिए भारत ने वातावरण दिया,लेकिन उनके पड़ोसी पाकिस्तान ने इस वातावरण को पनपने नहीं दिया। अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी है और पाकिस्तान का भी। पाकिस्तान के भारत से रिश्ते हमेशा तनाव भरे ही रहते हैं। ऐसे में अगर अफगानिस्तान का झुकाव भी उसकी तरफ रहेगा, तो भारत के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। इसलिए भारत ने शुरू से अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखा है।
अफगानिस्तान तालीबानी बर्बरता एवं पाकिस्तानी कुचेष्ठाओं के चलते इस वक्त भयानक संकटों का सामना कर रहा है। देश में भुखमरी के हालात हैं, आम जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विकास की जगह आतंकवाद मुख्य मुद्दा बना हुआ है। देश के अंदरूनी मामलों में पाकिस्तान का दखल मुश्किलों को और बढ़ा रहा है,अधिक चिन्ता की बात तो यह है कि अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग आतंकवाद के लिए हो रहा है। भारत यदि इन चिन्ताओं को दूर करने के लिए आगे आया है तो यह एक सराहनीय कदम है।
इस तरह भारत ने अफगानिस्तान को जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेज कर न सिर्फ दुनिया के सामने अपना मानवीय पक्ष स्पष्ट किया है,बल्कि अफगानिस्तान के लोगों का दिल जीतने का भी प्रयास किया है। कूटनीतिक दृष्टि से भी यह बड़ा कदम उठाया है। चीन और अमेरिका दोनों को इससे स्पष्ट संकेत मिल गया है।
भारत चाहता है कि अफगानी लोग अहिंसा,शांति, मानवीयता एवं आतंकमुक्ति का जीवन जीएं। न अहिंसा आसमान से उतरती है,न शांति धरती से उगती है। इसके लिए पूरे राष्ट्र का एक चरित्र बनाना जरूरी होता है,भारत ऐसी ही कोशिश कर रहा है। वही सोने का पात्र होता है,जिसमें अहिंसा रूपी शेरनी का दूध ठहरता है। वही उर्वरा धरती होती है, जहां शांति का कल्पवृक्ष फलता है। ऐसी संभावनाओं को तलाशते हुए ही भारत सहयोग के लिए आगे आया है।
भारत ने तो अफगानिस्तान का लम्बे समय तक सहयोग किया है। वहां के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जो भारत वहां का विकास चाहता है,शांति चाहता है,उन्नत चरित्र गढ़ना चाहता है,हर इंसान को साधन-सुविधाएं,शिक्षा-चिकित्सा देना चाहता है,उस देश का भी भारत के साथ प्रगाढ़ मै़त्री संबंध है।
अब यह तालिबान पर निर्भर है कि वह कैसे सकारात्मक कदम बढ़ाता है,लेकिन उसकी मानसिकता बदलने तक भारत इंतजार नहीं कर सकता है,इसलिए उसने अफगानी लोगों के सहयोग के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं, जो सराहनीय है,मानवीय सोच से जुड़े हैं, निश्चित ही इन सहयोगी कदमों का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।

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