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अहंकार

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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जब चले जीवन नैया लेकर,
हाथों में मैं की पतवार
सोचा,कर लेंगें जीवन नैया पार,
पकड़ समय की धार।
काम न आयी मैं की पतवार,
तेज समय की धार
अपने छूटे,सपने टूटे,
कदर नहीं की अपनों की
जब समय था तेरे पास।
ऐसे गुजरे तूफ़ानों से,
छूट गयीं मैं की पतवार।
बीता समय न लौट के आया,
बिखर गया परिवार।
तिनका-तिनका जोड़ बनाया,
मैं में मुझको ध्यान न आया
अहंकार में रावण भी,
किसी को अपना बना न पायाl
अर्थ कमाया,चैन गंवाया,
समझ में मुझको फिर भी न आया
जब उसका आया बुलावा,
अर्थ नहीं,कुछ काम है आयाl
पड़ी रह गयी ये सुंदर काया,
मैं ने मैं को है जलाया
अब मैं हममें है समायाll

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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