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आँचल का पहला फूल

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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माँ का आँचल और आँचल का पहला फूल नारी को सम्पूर्ण नारीत्व का भान कराता है। माँ बनना नारी की सम्पूर्णता है। मातृत्व का आभास ही तन,मन और जीवन में उल्लास की सृष्टि करता है। ये एक ऐसा अहसास है,जिस अहसास को महसूस करने के लिये एक माँ पूरा जीवन तरसती है,और अपने आँचल में पहले फूल के आने के बाद
अपनी सम्पूर्णता की ओर प्रथम कदम उठाती है। माँ बनने के बाद अपना भाग्य सराहती है कि,उसकी झोली में पहला पुष्प गिरा,जो उसके वंश का संचालक-प्रवर्धक- पालनकर्ता होगा।
किसी भी बगिया का पहला पुष्प अपनी एक अलग महत्ता रखता है। लोगों का नजरिया ही अलग होता है। पूरा परिवार और पूरा समाज प्यार करता है। आँचल के पहले फूल
के बारे में सोचकर ही मन उद्धेलित हो जाता है,मन में खुशियों की तरंगें उठने लगती हैं। एक अलग ही अनुभूति से मन चंचल हो उठता है,आँखों से स्वतः ही अश्रुधारा बहने लगती है। एक सुखद अहसास बार-बार मन को प्रफुल्लित करता है। पयोधरों में पय की धार प्रस्फुटित होने लगती है। लंबे अंतराल और असह्य कष्ट के बाद पहला फूल आँचल में आता है-माँ के आँचल का पहला फूल।

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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