कुल पृष्ठ दर्शन : 213

You are currently viewing आनंद-उल्लास का दूजा नाम ‘वसंत’

आनंद-उल्लास का दूजा नाम ‘वसंत’

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
************************************

आया मनभावन वसंत…

प्रकृति के नवाचार के लिए नई उम्मीद, नए संकल्प से जब तन-मन दोनों जुड़ जाते हों, आसमान का सूर्य भी अपनी किरणों को फैलाने के लिए लालायित रहता हो, जब खुशियों के पंख लगे हों, भंवरे गुंजन करते हों, संगीत की स्वर लहरियाँ कानों में गूंज रही हों, राग-रागिनी जुगलबंदी कर रहे हों, तब जो आनंद और आंतरिक उल्लास आता है, वही वसंत ऋतु है। ऐसी स्थिति में लगता है, मानो सब ऋतुराज का आह्वान कर रहे हैं। धरती के नव सृजन की परिकल्पना को साकार करने की यह अमरबेला मानो नए वातावरण को स्वच्छ व शुद्ध करके पर्यावरण की सहयोगी बन तैयार हो गई है। बसंत उत्सव में सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भोर की वह बेला मन को प्रफुल्लित कर जाती है। हर फूल-कली की वह रंग-बिरंगी बानगी देख कर मन भावन हो जाता है।
चूंकि, चमन में फूल सकारात्मक ऊर्जा के परिचायक होते हैं, तभी तो बसंत ऋतु में खेतों में पीली सरसों के वह फूल हों, या आम के पेड़ों पर पीले मौर, सबको बसंत ऋतु का अहसास करा ही देते हैं।
ऐसे में प्रकृति की वन्दना करके धरती सुंदरता की चादर ओढ़ कर सुनहरी हो जाती है। आखिर क्या गुणगान करें इस प्रकृति और वसंत राज का, क्योंकि हर तरफ तो मौसमी रंगत है। बसंत ऋतु के शबाब और रंग-बिरंगी सुंदरता को निहारते हुए क्या लिखूं!
नदियों का प्रवाह यानि कल-कल करती बहती अमृत की धारा व इस मौसम में गीत-संगीत, नृत्य करते आमजन के साथ विभिन्न जलाशय में तालाबों में कमल खिल रहे हैं। मौसम खुशनुमा हो रहा है, मानो प्रकृति बसंत का श्रंगार करके और खूबसूरत हो गई है।
बसंत ऋतु जीवन में आनंद की परिचायक है। हर दिन- रात, महीने बीतते जाते हैं, पर जो स्मरणीय बातें होती हैं, यादगार पल होते हैं, वह सही में जीवनभर याद रहते हैं।उसी प्रकार बसंत ऋतु भी सभी के लिए एक ऐसा ही सुखद अहसास कराती है, तथा हमें प्रकृति से जोड़े रखती है। हवा में भी एक अजीब-सा उल्लास होता है, बसंत उत्सव से उमंगता की यह संरचना दृष्टि पटल पर बस जाती है, इसलिए बसंत ऋतु ख़ुशी की पूरक है।

इस समय पुरवाई ऐसी चलती है, जैसे ईश्वर भी आंनद उत्सव में शामिल होकर उंमगता से झूम रहे हों। धरती में ही स्वर्ग की अनुभूति हो रही होती है। बसंत के आनंद में जो उल्लासपूर्ण माहौल होता है, वो पवित्रता का सूचक है। इस उत्सव में हम सभी को अपनी युवा पीढ़ी को जोड़ना चाहिए। हमारी प्राचीन परम्परा व संस्कृति में बसंत के आनंद-उल्लास को लेने के लिए युवा पीढ़ी भी आगे आए और इस सच्चाई को स्वीकार करे कि, प्रकृति से जीवन है और जीवन ही प्रकृति का श्रंगार है। मानव मन में सकारात्मकता का जो रस है, वह इसी की देन है। इसलिए उत्सव-पर्व हमें शिक्षा भी देते हैं, और अपने से जोड़े भी रखते हैं। आनंद के इस उल्लास में जीवन की परेशानी, दुःख-दर्द सब मिट जाते हैं, तभी तो जीवन में खुशियों का संचार होता रहता है।