क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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भय के भयानकतम के मध्य
साहस का दीपक जलाओ तुम,
विनाश की घुटन में हो निर्भय
निर्माण के गीत अब गाओ तुम।
जो बन गए युगों-युगों से भीरू
उनको वीर आल्हे सुनाओ रे!
दुर्दान्त शत्रुओं के समक्ष तुम,
अपना शौर्य और बल दिखाओ रेl
जहाँ फैली कल दावानल भयानक
आज प्रकृति वहाँ सुधा बरसाती है,
भस्म हुए तरूवरों के ही नीचे से
नवीन कोंपलें उग ऊपर आतीं हैं।
पराजय को समझकर भाग्य
दिया जिन्होनें पुरुषार्थ त्याग,
आज जलती जोतव हृदय में
जलाओ उनके उर में वही आगl
जो भूल गए हैं कदाचित उन्हें
अपना गौरव याद दिलाओ रे!
कर देता विश्व को कम्पित जो
वह पांचजन्य शंख बजाओ रेl
चुनौतियाँ जो खड़ी हैं ये सम्मुख
करो इन सबको वीरता से पार,
घिस चुका है जो सहकर आक्रमण
तेज़ करो पुनः उस पौरुष की धार।
विजयी होता वही जो ध्येय हेतु
संघर्ष हृदय लगाकर करता है,
एक बार जो चलता है पथ पर
फिर चुनौतियों से नहीं डरता है।
जो अट्टहास करते वैरी सारे
उनका अब शीश झुकाओ रे!
बनाकर मार्ग अपना स्वयमेव
विजय ध्वज ऊँचा फहराओ रेll
परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।