ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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मेघ, सावन और ईश्वर….
रचनाशिल्प:गुरु वर्ण के स्थान पर २ लघु अमान्य, २१ २१-२१-२१-२१-२१- २१-२१ प्रथम चरण, २१-२१-२१-२१-२१-२१- २१-२ द्वितीय चरण
ग्रीष्म ताप तेज लाप भूमि थी पड़ी सपाट।
रंग रूप क्षीण प्यास तृप्त हो गुहारती॥
मेघ आ गया पुकार को सुना किया दहाड़।
नैन अश्रु ले बढ़ी पृथा खड़ी निहारती॥
आ गया सनेह मेह मेघराज ले अषाढ़़।
भष्म देह दाह को वसुंधरा सँवारती॥
पीर देख सूर्य को ढका मिला असीम शांति।
झूम आज अम्बु बूँद मोद हो निहारती॥
वृष्टि और वायु बंद कक्ष के खुले कपाट।
श्रावणी हरी-भरी हमें सदा दुलारती॥
ॐ नम: शिवाय गूंज श्रावणी करे जहान।
शंभु शंभु शंकरा महेश पूज आरती॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।