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इतनी-सी चाह मेरी भी…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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चाह नहीं, गुरु द्रोण-सा बनकर,
खातिर अर्जुन, एकलव्य मिटाऊँ।
इतनी सी बस, चाह जरूर कि,
बन चाणक्य, कई चन्द्र खिलाऊँ॥

चाह नहीं, वो देवों की सी,
सुबह-शाम पूजा जाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
मानव का तो मैं, सम्मान पाऊँ॥

चाह नहीं कि, ध्रुव, प्रह्लाद-सा,
बनूँ भक्त, भगवान रिझाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
सृष्टा का मैं, कृतज्ञ बन जाऊँ॥

चाह नहीं कि, देशभक्ति का,
मैं भी कोई इतिहास रचाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
भारत माँ का मैं, लाल कहाऊं॥

चाह नहीं, शक्तिपुंज-सा बन कर,
सर्वशक्तिमान, मैं ही बन जाऊं।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
निर्बल तो मैं न, कभी कहलाऊँ॥

श्रेष्ठ बनूं इस जग में सबसे,
चाहत कैसे रख सकता हूँ।
इतनी-सी बस,चाह जरूर कि,
स्वलक्ष्य सभी को मैं पाऊँ॥

चाह नहीं, वटवृक्ष-सा बनके,
छत्र-छाया सब पर फैलाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
तृण बन, सीता स्वाभिमान बचाऊँ॥

चाह नहीं, पिता दशरथ बन कर,
पुत्र वियोग में, प्राण गंवाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
बबूल नहीं, कुछ आम लगाऊँ॥

चाह नहीं, इतनी सारी कि
‘रमा’ मेरी दीवानी बने।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
‘लक्ष्मी’ को मैं शीश नवाऊँ॥

चाह नहीं, सम्मान पन्नों के,
बोझ तले मैं दब जाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
शब्द-स्वरों से, सुर-साज सजाऊँ॥

चाह नहीं, कि दान-धर्म से,
बन सर्वदाता, मैं नाम कमाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
जरूरतमन्दों के काम मैं आऊँ॥

चाह नहीं, वृहद बनूं सागर-सा,
विस्तार पे अपने ही इतराऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
जल बन सबकी प्यास बुझाऊँ॥

चाह नहीं, इतनी मेरी कि,
बनूं सूरज, नभ जगमगाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
‘दीप’ सा घर में तम को मिटाऊँ॥

चाह नहीं, अधिकार होड़ में,
हो विजित, अधिकारी बनूँ मैं।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
सेवाधर्म तो, सभी मैं निभाऊँ॥

चाह नहीं, गाँधी, हरीश-सी,
सत्य-उज्ज्वल मशाल जलाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
सत्य-शिव और सुंदर बनाऊँ॥

चाह नहीं, आदर्श राम-सा,
बन सपूत मैं नाम कमाऊँ।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
जग में कभी न कपूत कहाऊँ॥

चाह नहीं, इतनी भारी कि,
भाग्य मेरा ‘दिनकर’-सा चमके।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
नसीब मेरा जुगनू बन दमके॥

चाह नहीं, अमृत पीकर के,
अमर पद को प्राप्त करूँ मैं।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
इंसां धर्म पालन करते मरूँ मैं॥

चाह नहीं, स्वर्ग मिले मुझे भी,
जीवन अंत होने के बाद।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
मानुष जन्म पुनः मैं पाऊँ॥

चाह नहीं इतनी, मेरा भी,
कलम-इतिहास में नाम बने।
इतनी-सी बस, चाह जरूर कि,
‘अजस्र’ जीवन कलम मैं चलाऊँ॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|