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उनकी अहमियत को कभी नहीं भूलना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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माता-पिता दिवस (२४ जुलाई) विशेष….

यह माता-पिता के प्रति सम्मान प्रकट करने और हमारे लिए किए गए त्याग के प्रति शुक्रिया कहने का दिन है।
माता-पिता हर बच्चे-बड़े के लिए बड़े प्रिय होते हैं। कोई भी शख्स इस दुनिया में अपने माँ-बाप से बिछड़ना नहीं चाहता और इसी प्रेम को जाहिर करने के लिए यह दिन मनाया जाता है।
ये माता-पिता के प्रति प्रेम जाहिर करने का शुभ दिन है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करें। माता-पिता को बच्चे का पहला गुरु माना जाता है, क्योंकि माता-पिता ही बच्चे को उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं तथा अच्छी शिक्षा और संस्कार देते हैं। माता बिना रुके दिनभर घर का काम करने के बावजूद बच्चे की हर छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखती है तो पिता प्रयास करते हैं कि उनके बच्चे को किसी भी चीज की कमी न हो। इसलिए हमें अपने जीवन में माता-पिता की अहमियत को कभी नहीं भूलना चाहिए, उनका निरादर नहीं करना चाहिए तथा आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
इस दिन जल्दी उठने के बाद स्नान कर माता और पिता को एक ऊंचे आसन पर बैठा लें।अब माता-पिता के माथे पर तिलक लगाएं और उन पर पुष्प और अक्षत की वर्षा करें।इसके बाद घी का दीपक जलाकर माता- पिता की आरती उतारें। आरती के पश्चात् माता-पिता की ७ बार परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद मिष्ठान खिलाएं। इसके पश्चात् माता-पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
इस दिवस पर अपनी माता श्रीमती समुंद्री बाई और पिता प्रेमचंद जैन (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी) को स्मरण करता हूँ, जिन्होंने विपरीत परस्थितियों में पाल-पोसकर बड़ा किया। धार्मिक, नैतिक, सामाजिक संस्कार दिए, जो मेरे जीवन की स्थाई पूँजी है। सबके चरणों में अभिनन्दन-वंदन।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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