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उन्नत जीवन पुस्तक की जीवंतता से ही संभव

ललित गर्ग
दिल्ली
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‘विश्व पुस्तक दिवस’ (२३ अप्रैल) विशेष…

हर साल २३ अप्रैल को दुनियाभर में पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा देने एवं पुस्तक संकृति को जीवंत बनाए रखने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को किताबें पढ़ने, लाभ को पहचानने और बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। विलियम शेक्सपियर, मिगुएल डे सर्वेंट्स और जोसेप प्लाया का इसी दिन निधन हुआ था, जबकि मैनुएल मेजिया वल्लेजो और मौरिस ड्रून इसी दिन पैदा हुए थे। यूनेस्को ने २३ अप्रैल १९९५ को इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी।
पुस्तकों को ज्ञान का बाग भी कहा जाता है। यदि कोई इन पुस्तकों से सच्ची दोस्ती कर ले तो यकीन मानिए उसे जीवनभर का ज्ञान और हर समस्या का समाधान कुछ ही समय में मिल जाता है। रबींद्रनाथ टेगौर ने कहा, ‘उच्च शिक्षा वो है जो न केवल सूचनाएं देती है बल्कि हमारी जिंदगी को शांतिप्रिय भी बनाती है।’
समस्याओं एवं परेशानी के दौर में यह पुस्तक दोस्ती का पूरा फर्ज निभाती हैं। शायद यही कारण है कि हर मुश्किल घड़ी में कई पुस्तक प्रेमी इन्हीं पुस्तकों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं। कोरोना महासंकट में यह बात विशेष रूप से देखने को मिली थी।
पुस्तक का महत्व सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक है, किसी भी युग या आंधी में उसका महत्व कम नहीं हो सकता, इंटरनेट जैसी अनेक आंधियां आएंगी, लेकिन पुस्तक संस्कृति हर आंधी में अपनी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता को बनाए रख सकेगी, क्योंकि पुस्तकें पढ़ने का कोई एक लाभ नहीं होता। पुस्तकें मानसिक रूप से मजबूत बनाती हैं तथा सोचने-समझने के दायरे को बढ़ाती हैं। पुस्तकें नई दुनिया के द्वार खोलती हैं, दुनिया का अच्छा और बुरा चेहरा बताती, अच्छे बुरे का विवेक पैदा करती हैं, हर इंसान के अंदर सवाल पैदा करती हैं और उसे मानवता एवं मानव-मूल्यों की ओर ले जाती हैं। यही कारण है कि, अच्छी पुस्तकों को प्रोत्साहन देने के लिए सर्वाेदय साहित्य भंडार की स्थापना खुद विनोबा भावे ने १९६० में की थी। इस साहित्य भंडार का उद्देश्य है युवाओं को ज्ञानवान, संस्कारित और चरित्रवान बनाना। इसी तरह आचार्य श्री तुलसी ने नैतिक साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आदर्श साहित्य संघ की स्थापना आजादी के तुरन्त बाद की।
आधुनिकता की बात करें तो भी यह बात हर वक्त संभव नहीं कि किताबों के स्थान पर लैपटॉप आदि से पढ़ा जाए। किताबें हर वक्त साथ निभाती हैं, फिर चाहे वह बाल साहित्य हो या धार्मिक ग्रंथ। किताबों की दोस्ती हमेशा साथ निभाती है। जिन्हें पुस्तकों में दिलचस्पी है, वे किताब पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते, भले ही किताब में लिखी बात अन्य माध्यम से वे जान चुके हों। किसी व्यक्ति की किताबों का संकलन देखकर ही आप उसके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं। कहते हैं कि किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं और दोस्तों से ही आदमी की पहचान भी। किताबों में ही किताबों के बारे में जो लिखा है वह भी बहुत उल्लेखनीय और विचारोत्तेजक है। मसलन टोनी मोरिसन ने लिखा है- ‘कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें।’
मनुष्य के अंदर मानवीय मूल्यों के भंडार में वृद्धि करने में पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये पुस्तकें ही हैं जो बताती हैं कि विरोध करना क्यूँ जरूरी है। ये ही व्यवस्था विरोधी भी बनाती हैं तो समाज निर्माण की प्रेरणा देती है। समाज में कितनी ही बुराइयां व्याप्त हैं उनसे लड़ने और उनको खत्म करने का काम पुस्तकें ही करवाती हैं। शायद ये पुस्तकें ही हैं जिन्हें पढ़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज दुनिया की एक महाशक्ति बन गए हैं। कार्लाइल ने बड़ी वजन वाली बात कही है कि पुस्तकों का संकलन ही आज के युग के वास्तविक विद्यालय हैं।’ शिक्षाविद चार्ल्स विलियम इलियट ने कहा कि ‘पुस्तकें मित्रों में सबसे शांत व स्थिर हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान तथा श्रेष्ठ होती हैं। निःसंदेह पुस्तकें ज्ञानार्जन करने, मार्गदर्शन एवं परामर्श देने में में विशेष भूमिका निभाती है।’
तभी नरेन्द्र मोदी ने उपहार में ‘बुके नहीं बुक’ यानी किताब देने की बात कही है। सत्साहित्य में तोप, टैंक और परमाणु से भी कई गुणा अधिक ताकत होती है। अणु अस्त्र की शक्ति का उपयोग ध्वंसात्मक ही होता है, पर सत्साहित्य मानव-मूल्यों में आस्था पैदा करके स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण समाज की संरचना करती है। इसी से सकारात्मक परिवर्तन होता है जो सत्ता एवं कानून से होने वाले परिवर्तन से अधिक स्थायी होता है।
हजारीप्रसाद द्विवेदी ने तो कहा था कि, ‘साहित्य वह जादू की छड़ी है, जो पशुओं में, ईंट-पत्थरों में और पेड़-पौधों में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।’ इसलिए साहित्य ही वह मजबूत माध्यम है, जो हमारी राष्ट्रीय चेतना को जीवंतता प्रदान कर एवं भारतीय संस्कृति की सुरक्षा करके उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रांत कर सकता है। सत्साहित्य ही भारतीय संस्कृति के गौरव को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है, इसी से जीवन सरस एवं रम्य हो सकता है। पुस्तकें ही भारतीय जन-चेतना को झंकृत कर उन्हें नए भारत के निर्माण की दिशा में प्रेरित कर रही है। तय है कि इससे जीवन-निर्माण के नए दौर की उजली दिशाएं प्रस्फुटित होती रहेगी। पुस्तक प्रेमी पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम साहब ने कहा है कि ‘एक पुस्तक कई मित्रों के बराबर होती है और पुस्तकें सर्वश्रेष्ठ मित्र होती हैं। पुस्तकें मनुष्य के मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, चारित्रिक, व्यवसायिक एवं राजनीतिक विकास में अत्यंत सहायक एवं सफल दोस्त का फर्ज अदा करती हैं।’
ये किताबें हम सभी के जीवन की कहानियाँ अपने गर्भ में छुपाए रहती हैं, जिसमें होता है जीवन का रहस्यमय एवं रोमांचक संसार। इसलिए पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहन देकर ही हम उन्नत संस्कार, संसार एवं सृष्टि का निर्माण कर सकेंगे।

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