कुल पृष्ठ दर्शन : 203

You are currently viewing उन्माद को जड़ से मिटाएं

उन्माद को जड़ से मिटाएं

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
********************************************

देश के हित आज नूतन सर्जना करके दिखायें,
हम सिपाही काव्य के उन्माद को जड़ से मिटायें।

काल के मन पे नशे जैसा चढ़ा संवाद कविता,
चेतना का शब्द रूपों में गढ़ा उत्पाद कविता
आँसुओं के तेज में फौलाद को कविता गलाती,
खून से दीपक जलाकर भूख दीवाली मनाती।
देश के सौदागरों को दूर सत्ता से भगायें,
हम सिपाही काव्य के उन्माद को जड़ से मिटायें…॥

हो कला की साधना का ध्येय जन कल्याणकारी,
सृष्टि नवयुग की रचें हो चाँद तारों पर सवारी
अब कलम ऐसे चले जो कौम का गौरव सहेजे,
शब्द रूपी बाण से आतंक के फाड़ें कलेजे।
कुछ लिखें ऐसा कि पतझड़ में बहारें मुस्कुरायें,
हम सिपाही काव्य के उन्माद को जड़ से मिटायें…॥

लेखनी ऐसे चले कि राग को वैराग्य कर-कर दे,
रागिनी के जोर से दुर्भाग्य में सौभाग्य भर दे
छंद सुनकर यह धरा भी मोतियों से मांग भर ले,
वर्ग भेदों की शिलाएं तोड़कर जन पाँव धर ले।
खेत में फसलें नचें खलिहान नाचें गीत गायें,
हम सिपाही काव्य के उन्माद को जड़ से मिटायें…॥

पूछती युग चेतना कुछ प्रश्न उन बाजीगरों से,
तोप टू-जी कोयला औ यूरिया के तस्करों से
जो महल उनके खड़े हैं रक्त मज्जा में सने हैं,
चोर चौकीदार पर ही भींच कर मुट्ठी तने हैं।
चूसते जो खून ‘हलधर’ पास दिल्ली आ न पायें,
हम सिपाही काव्य के उन्माद को जड़ से मिटायें…॥

Leave a Reply