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गुरु ज्ञान दीप रवि सम समझो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शिक्षक दिवस विशेष…..

गुरु बिन ज्ञान न हो जीवन में,
अरुणाभ दिवाकर गुरु समझो।
घनघोर निशा अज्ञान तिमिर,
गुरु चन्द्रप्रभा जीवन समझो।

छल छद्म द्वेष ईर्ष्या लालच,
महा अंधकार निशा समझो!
घोर डरावन अज्ञान तिमिर,
गुरु ज्ञान दीप रवि सम समझो।

संस्कार पलित सदाचार सृजित,
गुरुता गौरव लेपित समझो।
सत्पथप्रेरक निर्माणक जन,
दिग्दर्शक हरिपद नित समझो।

निर्भेद ज्वलित बन गुरु दीपक,
बन दीपशिखा जीवन समझो।
नित ज्ञान तैल बन ज्योति प्रखर,
गुरु वशिष्ठ संदीपनी समझो।

अगस्त्य अत्रि जमदग्नि कौत्स,
भरद्वाज पराशर भृगु समझो।
कण्व शुक्र गौतम व्यास श्रंग्व,
विश्वामित्र कपिल शुक समझो।

मतिमान शास्त्र नैपुण्य सकल,
सद्विवेक पथिक मानक समझो।
जो धीर-वीर साहस गुणज्ञ,
परमार्थ निकेतन गुरु समझो।

हर अंधकार मानव जीवन,
नवप्रभात प्रगति दीपक समझो।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ नायक,
नवांकुर कुसुमाकर समझो।

गुरु ज्ञान दीप बिन कहॅं जीवन,
कहॅं चरित्र सुपथ मानव समझो।
कहाँ मान दान सुकीर्ति जगत,
बस अज्ञान अंध दानव समझो।

सद्गुरुत्व करोड़ों जले दीप,
सद्नीति न्याय चालक समझो।
परमार्थ प्रीति पुरुषार्थ सबल,
गुरुदीप ज्वलित साधक समझो।

अखिल सृष्टि निर्माणक मानव,
करुणाकर ममता गुरु समझो।
क्षमा शील प्रीति गुण रत्नाकर,
संयम गंभीर निरत समझो।

समभाव शान्ति आनंद मुखर,
गुरुदीप्त दीप शाश्वत समझो।
माधव मुकुन्द गीतोपदेश,
चाणक्य दीप गुरुता समझो।

नवज्योति जले गुरुज्ञान सफल,
पथ मानवता मूल्यक समझो।
सच्चरित्र प्रगति सुपथ नैतिक,
औदार्य प्रकृति शिक्षक समझो।

निशिकांत प्रभा मधुरिम शीतल,
गुरु दीप ज्वलित तारक समझो।
असंख्य शिष्य गुरुदीप ज्वलित,
पात्र सुयश सम्मानित समझो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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