कुल पृष्ठ दर्शन : 447

You are currently viewing ऐसी धरती,ऐसा जहान

ऐसी धरती,ऐसा जहान

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
******************************

प्रेम की धरती,
प्रेम का आसमान
न हो अकेलापन,
न ही दुखित मन
जहां भी जाओ,
बस मिले अपनापन
प्रेम की भाषा हो,
मानवता ही धर्म हो
क्यों नही हम बनाते,
ऐसी धरती ऐसा जहान।

न अमीर न गरीब,
न ऊँच न कोई नीच
न कोई जात न कोई पात,
चारों ओर बस एक ही कात
मानव की हो बस मानव ही पहचान,
कर्म प्रधान देश हो कर्म प्रधान
कर्म ही हो पूजा कर्म ही हो भगवान,
जहाँ सबके मन बसे आदर और सद्भाव
क्यों नहीं हम बनाते,
ऐसी धरती ऐसा जहान।

न कही रंगभेद,
न ही आतंकवाद
सभी मानव हो सफल,
खींचे न एक-दूसरे की टांग
वसुधैव कुटुम्बकम में हो,
प्रगति का आधार
भूख और प्यास से,
जहाँ हर मानव हो तृप्त
क्यों नहीं हम बनाते,
ऐसी धरती ऐसा जहान।

न पुरुष प्रधान समाज,
न किसी स्त्री के साथ अन्याय
न ही कोई अनाथ,
न ही कोई वृद्धाश्रम
हर घर में हो खुशियाली,
सुखमय हो हर परिवार
बड़े बुजुर्गों की छाँव में,
पले घर-आँगन संसार।
क्यों नहीं बनाते हम,
ऐसी धरती ऐसा जहान॥

Leave a Reply