कुल पृष्ठ दर्शन : 365

You are currently viewing कवि हैं हम

कवि हैं हम

मच्छिंद्र भिसे
सातारा(महाराष्ट्र)

**********************************************************************************

अच्छा हुआ नेता नहीं हूँ,
जो चुनाव में भी
चूना पान को नहीं,
भोली जनता को लगाते हैं।
हम सम्मान से नहीं,
शब्दों से शान बढ़ाते हैं
वह कवि हैं हम,
जीवन सुख-दु:ख के
गीत हम गाते हैं।

नेता और कवि
एक मंच पर जब भी मिलते हैं,
एक वचनों से
तो दूजे शब्दों से भिड़ जाते हैं।
सभ्यता की पोशाक चढ़ाए
ठाठ एक दिखाता है,
दूजा हो चाहे दुबला,पतला या मोटा,
सभ्यता पोशाक से नहीं
आचरण से सिखाता है।
और मंच पर नेता के वचन
जहाँ खत्म हो जाते हैं बंधु,
निद्रीस्त शब्द जगकर
कवि को जगाते हैं।
कवि हैं हम,
स्नेह सुमनों को बिछाते हैं
जीवन सुख-दु:ख के,
गीत हम गाते हैं।

झूठा नकाब कवि
कभी पहन सकता ही नहीं,
और नेता कभी
चेहरा असली दिखाता भी नहीं।
यदि होता सच्चाई के साथ
सबका विकास,
तो फिर कवि ऊँचे मकानों में होते
प्रकाशकों के गुलाम नहीं,
और हर नेता सबके दिल में होता
बदलते रंग झंडे के नीचे नहीं।
बावजूद इसके अगर,
नकाब दोनों ने ओढ़ भी लिए
तो नेता खाते ठोकर,
और कवि जोकर दिख जाते हैं।
कवि हैं हम,
जोकर बनकर भी
जीवन में मुस्कान ही लाते हैं।
जीवन सुख-दु:ख के,
गीत हम गाते हैं।

यदि कवि नेता बन जाए
तो कल्याण हो जाता है,
अटल जैसा कोई
‘अटल’ ही पैदा हो जाता है।
नेता यदि आदर्श हो तो
कवि पथदर्शक बन जाता है,
नेहरू-सा जब लड़खडा़ए
तो आधार जयशंकर-सा बन जाता है।
आज नेता के रंग बदले
पर कवि की कलम नहीं,
दुनिया में वह जगह बनी ही नहीं
जहाँ कवि पहुँचे ही नहीं,
क्योंकि कवि जीवन जहर
अमृत मान पी लेता है।
नेता तो चंद दिनों का मेहमान,
और कवि अमर हो जाता है।
कवि हैं हम,
शब्दों में संसार भर जाते हैं
जीवन सुख-दु:ख के
गीत हम गाते हैं॥

परिचय–मच्छिंद्र भिसे का जन्म ३ मई १९८५ को भिरडाचीवाडी (तहसील वाई,जिला सातारा) में हुआ है। महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले श्री भिसे का स्थाई बसेरा वर्तमान में भिरडाचीवाडी(पोस्ट भुईंज) में ही है। आपको मराठी,हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। शहर भिरडाचीवाडी निवासी श्री भिसे ने एम.ए.(हिंदी),बी.एड. एवं `सेट` (हिंदी)की शिक्षा प्राप्त की है और कार्यक्षेत्र में अध्यापक हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप महाराष्ट्र में पाठ्यपुस्तक निर्माण में समीक्षक सहित सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल में सक्रिय कार्य(अध्यापक-छात्र प्रतियोगिताओं के आयोजन-नियोजन में)करते हुए अध्यापकों के लिए मार्गदर्शक के रूप में भी उपलब्ध हैं तो हिंदी विषय की कृति पुस्तिका के निर्माण और गणेशोत्सव मंडल में भी गत ७ साल से मार्गदर्शक की सफल भूमिका में हैं। साथ ही छात्रों के लिए विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकारों की करीब १५ हजार रुपए की किताबें नि:शुल्क उपलब्ध कराकर पठन के लिए प्रेरित किया है। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता,कहानी, एकांकी,हाइकु और मुक्तक भी है। आपकी रचनाएं देशस्तर की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको सलूम्बर(राजस्थान)द्वारा आयोजित बाल साहित्यकार सम्मान समारोह एवं काव्य सम्मेलन में विशेष सहभागिता हेतु स्मृति चिह्न,महाराष्ट्र राज्य हिंदी अध्यापक महामंडल से अध्यापक निबंध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार के साथ ही राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह(चितौड़गढ़)में महाराष्ट्र के प्रतिनिधित्व हेतु स्मृति चिह्न एवं किताबों की भेंट,जिला स्तरीय हिंदी अध्यापक वक्तृत्व प्रतोयोगिता में सम्मान तथा वर्ष २०१३ से २०१७ तक सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल द्वारा कक्षा दसवीं में `हिंदी` विषय के विशेष परिणामों को लेकर भी सम्मानित किया गया है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय मच्छिंद्र भिसे की विशेष उपलब्धि एक त्रैमासिक पत्रिका का सह-सम्पादक होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों को अभिव्यक्ति देना,उपयोग सामाजिक हित हेतु करना और मात्र हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा हैं तो बाल साहित्यकार राजकुमार जैन `राजन` एवं तानाजी काशीनाथ सूर्यवंशी ‘ताका’ हैं। इनकी विशेषज्ञता-धन से ज्यादा मानव धन कमाने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“सरस्वती का सेवक हूँ। आज देश दुगनी गति से विकास कर रहा है,परंतु राजनीतिक व्यवस्था के कारण अनेक मुश्किलों का सामना जनता को करना पढ़ रहा है,जो बहुत ही घातक है। मेरे जीवन को स्तर हिंदी विषय अध्यापक होने के कारण ही मिला है। हिंदी ही मेरी पहचान है। पूरे विश्व ने हिंदी को अपनाया,परंतु पूरे भारतवासी इसे अपनाने में हिचकिचा रहे हैं,फलस्वरूप राष्ट्रीय भाषा होते हुए भी ‘राष्ट्रभाषा’ का दर्जा नहीं मिला है। अहिंदी राज्यों में शिक्षा से हिंदी विषय को ही हटाने का प्रयास जारी है। इस समस्या को मिटाने हेतु हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।

Leave a Reply