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कश्मीर पर सार्थक संवाद हुआ

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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जम्मू-कश्मीर के नेताओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संवाद काफी सार्थक रहा। इसे हम एक अच्छी शुरुआत भी कह सकते हैं। २२ माह पहले जब सरकार ने धारा ३७० हटाई थी और इन नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था,तब और अब के माहौल में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। जब इस संवाद की घोषणा हुई तो मन में दो शंकाएँ थीं। एक तो यह कि कुछ कश्मीरी नेता इसमें भाग लेने से ही मना कर देंगे। यदि वे भाग लेंगे तो बैठक में बड़ा हंगामा होगा। कहा-सुनी होगी,बहिष्कार होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उमर अब्दुल्ला जैसे दो-तीन नेताओं ने कहा कि यह संवाद बहुत शांति और मर्यादा से सम्पन्न हुआ। इसका कारण शायद यह भी रहा कि कश्मीर के दर्जे में इतने गंभीर परिवर्तन के बावजूद ये नेतागण कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर सके। इन्हें जेल में डाल दिया गया, इसके बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा। गिरफ्तार नेताओं में ३ पूर्व मुख्यमंत्री भी थे। डाॅ. फारुक अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती। तीनों दिल्ली आए। चौथे पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद भी इस संवाद में शामिल हुए। यह संवाद अगले विधानसभा चुनाव में चुनाव-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए बुलाया गया था,लेकिन वास्तव में इसके बहाने कश्मीर में अब राजनीतिक प्रक्रिया का प्रारंभ हो गया है। सरकार ने धारा ३७० को वापिस ले आने का कोई संकेत नहीं दिया है। कश्मीरी दलों के नेताओं ने अपनी इस मांग को उठाया जरुर,लेकिन उसे ही एक मात्र मुद्दा नहीं बनाया। समझा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव पहले होंगे और उसे राज्य का दर्जा बाद में मिलेगा। उसे चुनाव के पहले ही राज्य का दर्जा क्यों नहीं दे दिया जाए और राज्यपाल की देख-रेख में चुनाव क्यों नहीं करवा दिए जाएं ? जहां तक धारा ३७० का सवाल है,उसकी जगह धारा ३७१ के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष सुविधाएं जरुर दे दी जाएं,जैसे-उत्तराखंड,मिजोरम,नागालैंड आदि राज्यों को दी गई हैं। गुलाम नबी आजाद की इस मांग को भी मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि अब गिरफ्तार नेताओं को रिहा कर दिया जाए, पंडितों का पुनर्वास किया जाए और कश्मीरियों के रोजगार को सुरक्षित किया जाए। भारत के अन्य राज्यों की तरह कश्मीर को भी बराबरी का दर्जा मिले। न वह घटिया हो और न ही बढ़िया! जहां तक पाकिस्तान का सवाल है,उसने हर तीर आज़मा कर देख लिया है। उसे पता चल गया है कि कश्मीर पर अब उसका कोई दांव नहीं चल पाएगा। अब तो उसके कब्जे के कश्मीर पर बात होनी चाहिए। यदि दोनों कश्मीरों को मिला दिया जाए तो अब तक जो खाई थी,वह पुल बन सकती है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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