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कष्ट देकर पटाखे जलाना जरूरी ?

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

बहुत पहले हम अपनी खुशियों का इज़हार प्रसन्नता,आनंद के साथ मनाते और व्यक्त करते थे पर अब जबसे आर्थिक उन्नति हुई और व्यक्तिगत स्वच्छंदता बढ़ी,सामाजिकता घटी,तब से धन,जन, मन,वातावरण का मूल्य घटा है। आज हम आधुनिक शिक्षित हुए अपनी मर्यादा छोड़ दी या तोड़ दी। जहाँ एक ओर करोड़ों लोग एक-एक अन्न के दाने के लिए तरस रहे,दूसरी ओर धन-दौलत ऐश्वर्य की कमी नहीं हैं। वैसे भौतिक सुख-सुविधाएँ अपने अपने पाप पुण्य से मिलती हैं,और सब अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं।
वैसे विगत ३० वर्षों से त्यौहार एक औपचारिकता बनते जा रहे हैं। जबसे सूचना प्रौद्योगिकी का चलन बढ़ा नवयुवकों को समय का अभाव हो गया,पर धन की कमी नहीं रही। आज आपस में बातचीत करने का समय नहीं,बैठने-उठने की परम्परा भी कम होती जा रही हैं। शिक्षित वर्ग महानगरों और विदेशों में पलायन कर गए और कर रहे हैं,क्योंकि उन्हें उज्जवल भविष्य चाहिए।
सामाजिकता कम होने से आपसी प्रेम,लगाव कम हो गया। हम बहुत जागरूक हो चुके हैं,पर हम स्वार्थी हो चुके हैं। हम अपना मनोरंजन,ख़ुशी का आनंद लेते हैं और हम उसमें बँटवारा नहीं करते हैं। वर्षों से इस बात पर जानकारी दी जा रही है कि दीवाली में पटाखों का सीमित या बिलकुल उपयोग न करें,इस बात पर चिंतन करें कि,क्षणभर की ख़ुशी के लिए हम कितना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। हमारे कारण लाभ कम और नुकसान किया जाता है। हम धन,पर्यावरण के साथ अनेक जीव-जंतुओं की अनावश्यक हिंसा के साथ कष्ट देते हैं,जो रुग्ण है,जिनको ध्वनि से कष्ट होता है,उनको बरबस परेशां करते हैं। कुछ संमर्थन करते हैं तो कुछ विरोध करते हैं,पर विरोध करने वाले अपने हृदय से बिना भेदभाव के पूछे कि हम पटाखा चलाने या जलाने के बाद क्या पाते हैं। आनंद ऐसा मनाया जाए जिससे अन्य को मानसिक,वाचनिक और शारीरिक कष्ट न हो। यह आदर्श ख़ुशी है न कि, कोई अभाव में जीवन जिए और कोई व्यर्थ में धन नष्ट करे। त्यौहार उत्साह से जरूर मनाएं,पर नयों का भी ध्यान रख कर। पटाखे हिंसा का प्रतीक हैं, और हमें जीवन में अहिंसा की जरुरत है और स्नेह बाँटने के लिए है। इस वर्ष यह जरूर अपनाएं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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