डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
*************************************************
संतान को अपने जीवन भर की,
कमाई और जमा पूंजी जोड़ कर
विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजा,
धन अर्जन कर, प्रसिद्धि प्राप्त करने भेजा।
पर क्या खबर थी क्या पता था ?
ऐसा भी एक दिन आएगा जब
अस्वस्थ पिता को अस्पताल में रख,
बूढ़ी माँ को बिलखता छोड़ जाएगा।
वो उनको देखने भी नहीं आएगा,
माँ सोच रही थी कहाँ चूक हुई मेरी परवरिश में
पिता भी ये सोच कर हैरान थे,
कहाँ ढील दी मैंने अनुशासन में ?
सिखाया था बचपन से सदाचार, प्रेम और विश्वास,
बड़ों का आदर करना और सबका सम्मान।
पश्चिम की अंधाधुंध दौड़ में सब भूल गया इंसान,
कहाँ खो गया इस युग में मेरे देश का स्वर्णिम संस्कार ?