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काला धन खत्म कैसे हो ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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काले धन ने हमारी संसद को भी अंगूठा दिखा दिया है। कोई यह बताए कि जिनकी जिंदगी ही काले धन पर निर्भर है,वे यह क्यों और कैसे बताएंगे कि देश और विदेशों में काला धन कितना है और उसे कैसे-कैसे छिपाकर रखा गया है। हमारी लोकसभा की स्थायी वित्त समिति ने काले धन का पता करने में बरसों खपा दिए,लेकिन उसके हाथ अभी तक कोई ठोस आँकड़ा तक नहीं आया है। तीन गहन अनुसंधान करने वाली वित्तीय संस्थाओं ने संसदीय समिति की मदद में जमीन-आसमान एक कर दिए, लेकिन उनका भी कहना है कि १९८० से २०१० के दौरान भारतीयों ने विदेशों में १५ लाख करोड़ से ३५ लाख करोड़ रु. तक काला धन छिपा रखा है। यह धन पैदा हुआ है,निर्माण-कार्यों, खनन,दवा-निर्माण,पान-मसाला,गुटखा,तंबाकू,सट्टा,फिल्म और शिक्षा के क्षेत्रों में। तीनों संस्थाओं ने अलग-अलग दावे किए हैं। तीनों ने यह भी कहा है कि यह काला धन देश की सकल संपदा (जीडीपी) के सात प्रतिशत से १२० प्रतिशत भी हो सकता है। इन तीनों संस्थाओं को २०११ में डाॅ.मनमोहनसिंह की कांग्रेस सरकार ने यह काम सौंपा था। वास्तव में यह काम तो करना चाहिए था,मोदी सरकार को,क्योंकि २०१४ का चुनाव वह इसी नारे पर जीती थी लेकिन कोई भी सरकार काले धन को खत्म कैसे कर सकती है ? यदि काला धन खत्म हो जाए तो हमारे नेताओं की दुकानें कैसे चलेंगी ? सारे राजनीतिक दलों के दफ्तरों पर ताले ठुक जाएंगे। वर्तमान सरकार को चाहिए था कि उसने नोटबंदी और जीएसटी जो लागू की,उससे काले धन पर कितना काबू पाया गया,वह यह बताती। इस सरकार ने तो बेनामी चुनावी बांड जारी करके काले धन की आवाजाही को और भी सरल बना दिया है। अच्छा तो यह है कि सरकार किसी तरह आयकर को ही खत्म करे ताकि कालेधन की कल्पना ही खत्म हो जाए। सरकार को जिस धन पर कर नहीं दिया जाता,उसे काला कहने की बजाय रिश्वत,ठगी,ब्लेकमेल,वेश्यावृत्ति,हरामखोरी से कमाया पैसा कहा जाए तो बेहतर होगा,लेकिन सरकार के खर्चे चलाने के लिए वैकल्पिक आमदनी के रास्ते खोजने की कोशिशें क्यों नहीं की जाए ? नागरिकों पर उनकी आय के बजाय व्यय पर कर लगाने की कोई नई व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जाए ? यह काम मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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