कुल पृष्ठ दर्शन : 205

You are currently viewing कुत्ता कभी नहीं पालूँगी…

कुत्ता कभी नहीं पालूँगी…

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
*************************************

मेरी गली में रात को कुत्ते बहुत ज़ोर-ज़ोर से भौंक रहे थे। मैंने कारण जानने की उत्सुकता से पति को गहरी नींद से जगाते हुए पूछा, “इतनी रात को ये कुत्ते क्यों भौंक रहे हैं ?“
उन्हेोंने कहा, ‘तुम कुत्तों से बहुत डरती हो! सो जाओ,मुझे भी सोने दो,सुबह जल्दी काम पर जाना है।“
मैंने कहा, “ये भी कोई बात हुई,इंसान कुत्ते से नहीं डरेगा नहीं तो क्या करेगा,जब देखो,कभी भी मन चाहे गली में आते-जाते को आए दिन काट लेते हैं जी! “
सच में,मुझे कुत्ते अच्छे नहीं लगते। कुत्ते के काटने से तो डर लगता ही है,पर उससे ज्यादा इनके भौंकने से कनपटी काँपने लगती है। बिस्तर से उठ गली की ओर खुलने वाली खिड़की से झाँका,देखा! एक दो तीन नहीं! कम से कम ८-१० कुत्ते एक-दूसरे से मिलकर एक लाचार बीमार कुत्ते पर गुर्रागुर्राते रहे और फिर तेज आवाज कर उसके चारों ओर चक्कर लगा कर पहले बारी-बारी से भौंकते हैं,फिर एकसाथ शुरु हो जाते। ओह! गँवार कहीं के,अपनी ही जाति पर ज़ुल्म कर रहे हैं,या इंसानों को ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर इसे बचाने की गुहार लगा रहे हैं। ख़ैर,मुझे क्या मुझे तो कुत्ते से डर लगता है।
“ऐ जी,जरा इन्हें यहाँ से भगाओ न।” कह मैंने पतिदेव का कंधा झंझोड़ दिया।
करवट ले बड़बड़ाए-“जाओ,खिड़की बंद कर दो और दूसरे कमरे में जाकर सो जाओ,मेरी नींद ख़राब मत करो,प्लीज़।”
मुझे कुछ देर के लिए उनका यह व्यवहार नागवार गुज़रा। मन आया लाइट जला दूँ,तब तो बिस्तर छोड़ कुत्तों को भगाने के लिए कुछ न कुछ करेंगे ही। लाठी से हड़का दें या कोई विचित्र आवाज से उन्हें भगा दें,…और नहीं तो चौकीदार से ही कह दें कि इन कुत्तों को यहाँ से भगा दो। ओह! पता नहीं,लोग घरों में कुत्ते कैसे पालते हैं! मुझे तो इनकी आवाज तक नहीं सुहाती,पालना तो दूर की बात। हे भगवान! तूने भी दुनिया में भाँति-भाँति के जानवर बनाए,पता नहीं कहाँ से पायी होगी इतनी सक्षम बुद्धि! हरेक की अलग-अलग,आदमी से लेकर पशु तक किसी की बुद्धि किसी से मैच ही नहीं करती …! पति के सुझाव को मान मैंने ही वह खिड़की ग्रिल से खींच बंद कर दी,मगर कुत्तों का भौंकना लगातार जारी रहा। और मेरी आँखों से नींद कोसों दूर होने लगी।
प्रत्येक बंगले के बाहर दो-तीन बंगले छोड़ कुत्ते अकसर बंगले की रखवाली में चौकीदार के साथ पहरा देते ही हैं। शायद कुत्ते पालना एक फ़ैशनेबल स्पर्धा भी बन चुकी है। हरि जी,अब हाई ब्रांड के कुत्ते पालने का शौक लगभग उच्चवर्ग,मध्यवर्ग, निम्नवर्ग… यूँ कहिए कि,सर्वहारा वर्ग तक में भी फैल चुका है। लोग देशी-विदेशी कुत्ते के छोटे पिल्ले हाई ब्रांड के पालते हैं,और २५ हजार से १ लाख तक में बेच देते हैं। यानि कि तीनों वर्गों में ख़रीद-बिक्री क़ानून व ग़ैर-क़ानूनन दोनों तरीक़े से होती है। अपनी पसंद की किस्म के विदेशी पिल्ले उच्चवर्ग तो शौक व रखवाली के लिए पालता है। मध्यवर्ग उच्चवर्ग की नकल कर पालता है। न पाले तो भी गुज़ारा हो सकता है। क्या कहें,जनाब! फिर भी शौक भी बड़ी चीज़ होती है। निम्नवर्ग सच में अपना पेट पालने के लिए पालता है। यह अलग बात है,धन ख़र्च करने का उसका वही परंपरागत स्त्रोत ही है जो आपके जमाने में भी उसकी भूख तृप्त करता रहा,…कच्ची देसी शराब। कुत्ते को भी पिलाता है खुद भी टन हो निश्चिंत सोता है।
पति की आवाज ने ध्यान भटकाया, ‘सो गई या नहीं!’
मैंने कहा, ‘कोशिश कर रही हूँ। ‘
“कल सुबह नगर पालिका में शिकायत करूँगा,गली के कुत्तों को वे पकड़ कर ले जाएँगें।“,पतिदेव मिमियाए स्वर में बोले।
मैं निश्चिंत जैसे हुई,वैसे ही कुत्तों के स्वर भी नदारद हो गए,जैसे उन्होंने पतिदेव की बातें अपनी ज्ञानेन्द्रियों से सुन ली हों। खिड़की की ओट से गली में झाँक पाया,अब एक भी कुत्ता वहाँ मौजूद न था। बिस्तर पर लेटते ही पल भर में आँख लग गई।
सुबह टी.वी. चलाया तो विज्ञापन देख हैरत हुई, जिसमें किसी पशुवादी समाज सेवा के प्रतिनिधि द्वारा बताया जा रहा था, “सब लोग विदेशी व ऊँची नस्ल के कुत्तों को पालने के बजाए गली-मुहल्ले के आवारा कुत्तों को पालें,यह एक धार्मिक व मानवतावादी कर्म है।“
मैं मन ही मन हाथ में चाय की प्याली पकड़ कुलबुला कर कह उठी, “देखो,हरि जी! सरकार भी अपना पीछा छुड़ाने के लिए कैसे-कैसे तरकीबें लगाती है।“
दूसरे ही क्षण,पतिदेव जी कहने लगे ,“अच्छा सुझाव है। कम से कम प्रजाति लुप्त न होगी। नगर पालिका वाले जो इंजेक्शन प्रजनन रोकने के लिए लगाते हैं। उनके रिएक्शन से बेचारे चमड़ी की बीमारी से कराह-कराह कर मर जाते हैं। क्यूँ न हम भी एक…!“
इसके आगे निकलने वाले शब्द को मैंने एक तीखी आँख पति देव को दिखा चुप कर दिया। सच में, ईश्वर प्रदत्त शाश्वत तत्वों के वर्ग भेद के सत्य से मनुष्य कितना घबराता है! उसे कभी सामंतवाद दिखाई देने लगता है तो कभी मार्क्सवाद,कुछ न दिखाई देता तो है न! परंपरागत आध्यात्म व दार्शनिकवाद। कुछ भी हो,मेरा दृढ़ निश्चय है मैं कुत्ता कभी न पालूँगी,मेरी स्वतंत्रता मेरी दृष्टि में प्राथमिक है। शायद यही पसंद गली-मुहल्ले के कुत्तों की भी हो!
फिर न जाने मुझे क्या सूझी,मन में बीमार कुत्ते के प्रति सहसा सहानुभूति जाग उठी,और पति से आग्रह किया कि चलिए,सरकारी पशु चिकित्सालय में फोन कर इस बीमार कुत्ते का इलाज करवाते हैं। उन्होंने मेरा यह सुझाव झट से मान लिया,और मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा। कुछ घंटों के बाद पशु चिकित्सालय की गाड़ी आई और कराह रहे कुत्ते को ले गई।
मुझे काफी संतोष महसूस हुआ। उसके इलाज की देखरेख में प्रतिदिन पशु चिकित्सालय से पूछताछ, दवाई ख़र्च और सप्ताह में एक बार उसे देखने भी जाना मुझे भला लगा। वो महीने भर में स्वस्थ हो वापस अपनी गली में अपने दोस्तों के साथ खेलने-कूदने,भागने-दौड़ने लगा।
इधर मैं यह सोच निश्चिंत थी कि अब कुत्ते रात को तो कम से कम नहीं भौंकेंगें,मगर कुछ दिन बाद वे फिर उसी तरह भौंकने लगे। सुबह गली-मुहल्ले में लोगों की भीड़ ने बताया कि,कल रात इस बंगले में चोरी करने की कोशिश को नाकाम करने का श्रेय इन कुत्तों को जाता है। चोरों की टाँगें तब तक पकड़े रखी,जब तक मालिक ने चोरों पुलिस के हवाले न कर दिया।
आज मैं स्वयं को मन ही मन गौरवान्वित महसूस कर रही थी। एक कुत्ते की देखरेख का बिल सब मिलकर चुकता कर रहे हैं। इंसानों में यह फ़ितरत नहीं है। सच में,ये कुत्ते भी राष्ट्रीय पुरस्कार के हक़दार हैं,मगर मेरा दृढ़ निश्चय टस से मस न हुआ, “मैं कुत्ता नहीं पालूँगी। हाँ,इंसानियत को सदैव अपने साथ रखूँगी।” लेकिन जल्द ही,मेरी इस सोच पर पानी फिर गया-जब पता चला कि चोर और पुलिस दोनों भाई-भाई हैं…।
००००००

Leave a Reply