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दिहाड़ी मजदूर

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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जीवन संघर्ष (मजदूर दिवस विशेष)…

अकेले बैठे सोच रहा था दिहाड़ी का मजदूर,
आज का दिन तो निकल गया कल का क्या होगा ?

घर से निकल अपने परिवार से दूर सोचता है मजदूर,
कितने घर बनाए मैंने खुद झोपड़ी में रहने को मजबूर।

मैं मजदूर हूँ और मजबूर हूँ मजदूरी करने को,
पेट भी भरना होता है इसलिए तो मजबूर हूँ मजदूरी को।

न जाने कितने घर बनाए पर अपना आशियाना न बना,
कितनी ठोकर खाई उसने पर कोई सहारा न बना।

दो जून रोटी की खातिर निकल गया मजदूर भला,
तपती धूप और लू के थपेड़ों को सहता मजदूर भला।

सबका बोझ उठाता,
मेहनत कर परिवार चलाता।
थका हुआ जानकर भी, सबका बोझ उठाता॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”