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कोरोना:तालाबंदी और शराब का ये ‘रिश्ता’…?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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विशेषज्ञ चाहे जो कहें,सरकार और आम आदमी की नजर में ‘कोरोना’ का ‘इलाज’ दारू ही है! कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में शराब की ऑन लाइन बिक्री की वेबसाइट पहले ही ठप्प हो गई तो भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में शराब की दुकानें खुलते ही कोरोना नियमों की ऐसी-तैसी करते हुए हजारों बेवड़ों की भीड़ दारू के ठेकों पर उमड़ पड़ी । आए दिन मोदी सरकार को नसीहत देने वाले राहुल गांधी ने छग सरकार की इस ‘जनहितैषी’ पहल पर कोई ट्वीट नहीं किया तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार को ‘दारू की जगह दवा की व्यवस्था करने की चेतावनी’ देने वाले भाजपा नेता व पूर्व मुख्‍यमंत्री यूपी सरकार की ‘मदिरा पहल’ पर मौन रहे। यूँ भी देश में तालाबंदी वाले अधिकांश राज्यों में बाकी सब बंद हो,कोविड मामले भी बढ़ रहे हों,लेकिन शराब दुकानें बाकायदा खुली हुई हैं, ताकि शराबियों को कोई दिक्कत न हो।
दरअसल,कोरोना काल और शराब के बीच कुछ ऐसा अजब रिश्ता है कि शायद एक-दूसरे के ‍बिना नहीं रह सकते। इसका पहला कारण तो यह है कि कोरोना तालाबंदी के चलते ज्यादातर व्यावसायिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं,जिसके कारण सरकार को मिलने वाले कर में काफी कमी आ जाती है। व्यवस्था को चलाने के लिए पैसा चाहिए और शराबियों की जेबों से यह आसानी से निकाला जा सकता है। शराबी भी यह ‘परोपकार’ करने से नहीं चूकते,क्योंकि पीने वालों के लिए दारू पहले है, बाकी सब बाद में। जाहिर है सरकारें शराब के मामले में उसके आर्थिक पक्ष को ज्यादा तवज्जो देती हैं और स्वास्थ्य पक्ष को अनदेखा करती हैं। इसके पीछे छुपा भाव यह है कि अगर कोई शराब पीकर ही मरना चाहता है तो सरकार भी इसमें क्या कर सकती है ? इस बार भी कोरोना कर्फ्यू या तालाबंदी में हमने देखा कि लतियल नशेड़ी दारू न मिलने पर अल्कोहलयुक्त सैनिटाइजर या स्प्रिट पीकर मर रहे हैं। इसमें सरकारों के लिए राहत की बात इतनी है कि इन मौतों का आँकड़ा कम से कम कोरोना मौतों की सूची में तो नहीं जुड़ रहा।
उधर शराबियों का अपना ‘गम’ है,क्योंकि वो तो पीने के लिए जीते हैं। ऐसे में शराबी की दारू बंद कर देना किसी कोविड रोगी की प्राणवायु आपूर्ति बंद कर देने जैसा है। दोनों में बुनियादी फर्क यह है कि,प्राणवायु मिलने पर कोविड मरीज की साँसें फिर चलने लगती हैं,जीने की आस बढ़ने लगती है, लेकिन शराबी को दारू न मिलने पर उसे ये दुनिया ही बेगानी लगने लगती है। दारू के दो घूंट पीते ही वो खुद जन्नत में पहुंच जाता है। कोविड से लेकर दुनिया की हर बुराई से लड़ने की क्षणिक ताकत उसमें आ जाती है। वह उस अस्तित्ववादी दर्शन को सचमुच जीने लगता है,वरना बाकी तो दुश्वारियों की प्राणवायु पर जिदंगी के कोविड अस्पताल में घिसटते ही रहना है।
और फिर मौत का क्या है ? वो तो आनी ही है। कोरोना पर सवार होकर आए या फिर दारू के पेग में भरकर आए। तू तो पी ले और जी ले।
शायद यही कारण है कि,तमाम शराबी शराब दुकानों पर उमड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र काशी में कोरोना तालाबंदी है,लेकिन योगी सरकार ने इस पुण्य नगरी में शराबियों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा है। वहां सुबह से ही शराब दुकानें खोल दी गईं और लोग टूट पड़े कि कहीं यह मौका हाथ से छूट न जाए। मदिरा प्र‍ेमियों की खुशी का आलम यह था कि महीने की जमा करने में जुट गए। दारू की ४ बोतल मिलने की खुशी कालाबाजारी में प्राणवायु सिलेंडर मिलने से कई गुना ज्यादा दिखी। इसी तरह पंजाब,महाराष्ट्र, चंडीगढ़,तमिलनाडु, राजस्थान और कर्नाटक में भी कमोबेश यही हाल है।

यहां सवाल पूछा जा सकता है कि आज जब सभी सरकारों की प्राथमिकता कोरोना से लड़ने की है तो ये दारूकांड बीच में कहां से आ जाता है ? जवाब बहुत सीधा और मासूम भी है। अगर उप्र की ही बात करें तो राज्य सरकार के मुताबिक शराब विक्रेता वेलफेयर एसोसिएशन का दबाव था। राज्य में पंचायत चुनाव के पहले से ही कोरोना कर्फ्यू के कारण शराब दुकानें बंद हैं,जिससे रोजाना १०० करोड़ रू.का नुकसान हो रहा था। अब कोई भी ‘जनहितैषी सरकार’ इतना नुकसान कैसे होने दे सकती है ? वैसे भी योगी सरकार ने शराब को ‘आवश्यक सेवा’ में रखा है। वहां शराब दुकाने बंद करने का निर्णय कलेक्टरों पर छोड़ा गया था। अब छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क भी सुनिए। छग कोरोना की दूसरी लहर में सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से है। वहां राज्य सरकार का तर्क है कि प्रदेश में शराब की ऑन लाइन बिक्री इसलिए शुरू की जा रही है, ताकि लोग जहरीली शराब पीकर न मरें। सरकार के इस फैसले पर इतनी ‘उत्साहपूर्ण’ प्रतिक्रिया थी कि,जिस पोर्टल पर ऑर्डर प्लेस होना था,उसका सर्वर १ घंटे में ही बैठ हो गया। छग सरकार के इस फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ. रमनसिंह ने राहुल गांधी को टैग कर ट्वीट किया कि हुजूर जरा छग पर भी ध्यान दीजिए,लेकिन यही रमनसिंह बनारस में सुबह से खुले शराब ठेकों को भूल गए।

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