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विनती

प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
पंडरिया (छत्तीसगढ़)
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विनती करती मैं सदा,जोड़ूँ दोनों हाथ।
विद्या दो माँ शारदे,चरण झुकाऊँ माथ॥

विनती मेरी आपसे,मुझको दो वरदान।
मैं छोटी-सी लेखिका,मिले कलम को मान॥

जय माँ वीणा वादिनी,स्वप्न करो साकार।
आयी हूँ मैं द्वार पर,कर दो बेड़ा पार॥

सत्य राह पर मैं चलूँ,सिर पर रखना हाथ।
भूल-चूक माफी मिले,रहना मेरे साथ॥

चले कलम मेरी सदा,ऐसा दो वरदान।
ज्ञान दीप जलता रहे,पूरे हो अरमान॥

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