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खेल-खेल में

पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़) 
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बच्चों की गर्मी की छुट्टियां और उनकी मस्तियां,हमारे घर के सामने बहुत बड़ा खुला मैदान है।बच्चे वहीं मिलकर क्रिकेट खेलते हैं।
अभी राजू निकला ही था कि,पीछे से आया-“माँ मुझे पैसे दो।”
मैंने उसे जोर से डांट दिया।
“क्या रोज-रोज पैसे ले जाते हो। फिर से गेंद खराब हो गई ? या खो गई ?”
उसने कहा-“नहीं माँ हम लोग जहां खेलते हैं,वहां नल है जिसमें से दिन भर पानी गिरता रहता है। हमारे कपड़े भी गंदे होते हैं,और गेंद भी खराब हो जाती है, और सबसे बड़ी बात माँ रोज इतना पानी खराब होता रहता है। इसलिए हम बच्चों ने तय किया है कि हम सभी पैसे इकट्ठा करके नया नल लाएंगें और गायों के लिए टब भी लाएंगे,जिसमें वो सभी गायें आकर पानी पिया करेंगी। इस गर्मी में माँ हम सब बच्चों ने मिलकर तय किया है कि जहां भी सड़क पर पानी बहते हुए देखेंगे,हम उसे सुधारेंगे आपस में पैसा जमा करके।”
मैं तो अवाक रह गई। उसने एक साँस में सारी बातें मुझे समझा दी। मन खुशियों से भर गया इतनी अच्छी सोच…। वाकई जो हम बड़े नहीं कर पाते,वो बच्चों ने खेल-खेल में कर दिया,सचमुच
‘जल ही जीवन’ है।

परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।

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