आदर्श पाण्डेय
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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हवाएं रुख बदलती है अब गाँव जाने को,
घटाएं रुख़ बदलती हैं अब गाँव जाने को।
घर-गाँव की वो पावन धरती,
खेतों खलिहानों की मिट्टी।
हमें बुलाती आज वही,
जहां बचपन बीता खेल-कूद।
जहां दादा-दादी का शासन,
जहां प्यारी माता का आँचल।
जहां पिता का मिलता प्यार-दुलार,
जहां भाई-बहन का प्रेम अपार।
जहां खुशबू बसती फूलों में,
जहां झूलते बच्चे झूलों में।
जहां नाना-नानी की यादें,
जहां मामा-मामी की बातें।
जहां रात में जुगुनू जलते हैं,
जहां रात में किस्से होते हैं।
वहीं पर आज जाने को,
हवाएं रुख़ बदलती हैं।
वहीं पर आज जाने को,
हवाएं रुख़ बदलती हैं॥