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गुलाब

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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जिसकी खुशबू से तर,
कई ग़ज़ल भीग गई
कई शायरी महक गई,
कई कलम बहक गई
कई कागज चहक गए।

वही सूख चुका…,
रंग और गंधहीन गुलाब
मुझे डायरी से नहीं,
एक रुमाल में तह मिला
कुछ चूरा, कुछ साबुत,
करता रहा गिला…
करता रहा…।

फिर महकाता रहा,
फिर बहकाता रहा
फिर भिगोता रहा,
वो सूख चुका गुलाब।
बस रुलाता रहा…,
रुलाता रहा…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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