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काला मुँह

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रेल्वे कॉलोनी में घर बहुत बढ़िया रहता है। सभी घर एक जैसे दिखते हैं, जिससे एक सुंदरता का अनुभव होता है। रेल्वे के सभी घरों में मकान नंबर लिखे होते हैं, और सभी सड़क का भी नंबर। अगर आपको अपने किसी परिचित के घर पहुँचना है तो केवल नाम जानने से नहीं चलेगा, आपको उनका घर और सड़क नंबर बताना पड़ेगा। मंडल तथा जोन की रेल्वे कॉलोनियाँ काफी विशाल हुआ करती हैं। सभी घरों के एकरूप होने से कभी-कभी यहाँ रहने वाले भी गलती से दूसरे के घर में घुस जाते हैं और शर्माते हुए फिर अपना घर खोज कर अंदर घुसते हैं।
मैं रेल्वे कॉलोनी में बड़ा हुआ, खेला कूदा, और फिर रेल्वे में भी नौकरी लग गई। मुझसे भी कई बार गलती हुई है। कभी-कभी अपनी सड़क छोड़ कर दूसरी पर पहुँच कर अपना घर पहचानने की कोशिश करने लग जाता था, और बाद में गलती का अहसास होता था। जब हम छोटे थे तो घर के सामने ही खेला-कूदा करते थे, और रोज दोस्तों की मण्डली के साथ सारा मुहल्ला घूम कर कहीं क्रिकेट मैच तो कहीं फुटबाल मैच खेलते थे। इससे हमें अपने मोहेल्ले के सभी लोगों का नाम, उनका घर तथा सड़क नंबर भी मुँहजुबानी याद रहती थी। जब कोई व्यक्ति किसी का नाम बताकर उनका पता हमसे पूछता था तो हम बच्चों में प्रतियोगिता हो जाया करती थी कि कौन उस व्यक्ति का मात्र नाम जान लेने के बाद उनका घर नंबर तथा सड़क नंबर सही-सही बताएगा और पूछने वाले को उस पते पर पहुँचा भी देगा। कभी-कभी मस्ती करने के लिए अनजाने व्यक्ति को दूसरी सड़क पर भी भेज दिया करते थे।
एक दिन राजू अपने दोस्तों के साथ अपने घर से कुछ दूर एक मैदान में खेल रहा था। इतने में एक अनजान व्यक्ति ने उसके ही पिताजी का नाम बताकर घर का पता बताने को कहा। राजू को उस व्यक्ति की सूरत पसंद नहीं आई तो दिमाग में उसकी फिरकी लेने की बात आई। फिर क्या था उस आदमी को उसने दूसरी सड़क की तरफ भेज दिया और दोस्तों के साथ मिल कर खुश हो रहा था कि कैसा बेवकूफ बनाया। करीब घंटे-२ घंटे के बाद जब राजू घर पहुँचा तो देखा कि वो व्यक्ति उसी के घर में बैठ कर चाय पीते हुए उसके पिताजी से बात कर रहा है। वो राजू को देखते ही पहचान गया और राजू के पिता को राजू द्वारा बताई गई गलत दिशा के बारे में जानकारी दी। इसके बाद राजू की जम कर कान खिंचाई हुई। राजू को बताया गया कि वो व्यक्ति राजू को रोज गणित पढ़ाने के लिए आया करेगा। अब तक तो राजू की सारी मस्ती निकल चुकी थी, और उसे अनजान व्यक्ति की फिरकी लेना भारी पड़ गया था।
आजकल कॉलोनी में बच्चे घर के बाहर नहीं के बराबर दिखते हैं। अगर कहीं दिखते भी हैं तो उनके मोहल्ले मैं कौन-कौन रहता है, इस बात में उन्हें कोई रुचि नहीं होती है। रेल्वे कॉलोनी के बड़े-बड़े खेल के मैदान भी आजकल सूने-से रहते हैं। हमारे समय में तो एक ही मैदान में ४-५ दल हुआ करते थे, जो अपनी-अपनी सीमा निर्धारित कर खेला करते थे।
कॉलोनी में रहने वाले अनुभवी लोग घर के आगे कुछ चिन्ह या निशानी लगा देते हैं, जिससे उनको कभी अपना घर पहचानने में गलती न हो।
एक बार मैं अपने दफ्तर से कुछ वक़्त पहले घर के लिए निकाल पड़ा। पिछली रात की पार्टी में जम कर खाना-पीना हुआ था, जिससे मेरा पेट गड़बड़ा गया था। मैं तेज गति से साइकल चलाकर घर पहुँचा। अपने घर में घुसने के लिए दरवाजा खटखटाया ही था कि किसी ने दरवाजा खोल दिया। जैसे ही अंदर घुसने के लिए आगे बड़ा तो देखा कि एक औरत जिसका मुँह काला था, दरवाजे पर खड़ी थी, और मेरे भीतर आने का इंतज़ार कर रही थी। मुझे लगा कि गलती से मैं किसी दूसरे के घर में घुस गया हूँ, पर अचानक उसकी डरावनी सूरत देख कर मेरे मुँह से ज़ोरदार चीख निकाल गई, और मैं अपनी पैंट को संभालते हुए बाहर की और भागा…। सोचा, इस संकट के समय में जब मुझे टॉइलेट जाना बेहद जरूरी था, तभी ऐसी मुसीबत आनी थी।
मेरे मुँह से चीख निकलते ही वो काली सूरत वाली औरत भी डर गई थी। मैं इतनी देर में छलांग लगाते हुए साईकल को वहीं छोड़ते हुए रास्ते पर चला आया था। तभी वो काली मुँह वाली औरत मेरी पत्नी की आवाज़ में दहाड़ लगाई- कहाँ जा रहे हो ? दिन का वक्त था और वो औरत घर के बाहर निकल कर आ गई थी, तो मुझमें थोड़ा-सा साहस का संचार हुआ और रुक कर उस औरत को ठीक से देखा। उसके कपड़ और हाव-भाव से मेरी पत्नी जैसी लग रही थी, पर चेहरा भूत जैसा काला था। उसने मुझसे कहा -डरो मत, मैं तुम्हारी पत्नी ही हूँ, चेहरे पर ब्लैक फ़ेस पैक लगाया हूँ।
इतने में मेरी पड़ोसन अपने घर से निकल कर बाहर आ गई। उसे यह माजरा समझने में बिल्कुल देर नहीं लगी और फिर उसके समझाने पर तब भी, मैं डरते-डरते अपने घर में घुसा, और एक दौड़ में टॉइलेट के अंदर समाकर जल्दी से दरवाज़ा लगा लिया। उसके बाद जो शांति का अहसास हुआ, उसका बयान करना असंभव है…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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